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NDDY 1ST YR 2.02 उपवास के प्रकार

 उपवास के प्रकार :-

व्रत या उपवास कितने प्रकार के होते हैं, जानिए | types of fasting in hinduism

(1) प्रातः कालिक उपवास –
यह उपवास सुगम है इसमें केवल सुबह का नाश्ता छोड़ देना पड़ता है और दिन- रात में केवल दो बार ही भोजन करने की व्यवस्था रहती है
(2)सायंकालिक उपवास –
इसको अर्द्धोपवास या एक समय का उपवास कहते है। इसमें रात का भोजन बंद कर देना पड़ता है और रात- दिन में केवल एक बार ही भोजन करना होता है। जो लोग पुराने और जटिल रोगों के शिकार होते है उनको इस उपवास से बड़ा लाभ होता है इस उपवास में जो भोजन किया जाता है उसका सुपाच्य एवं प्राकृतिक होना जरूरी होता है।
(3)एकाहारोपवास –
एक बार ही चीज खाना एकाहारोपवास कहलाता है। जैसे सुबह को यदि रोटी खाय तो शाम को केवल तरकारी दूसरे दिन सुबह को एक प्रकार का कोई फल और शाम को केवल दूध आदि शरीर की मामूली गड़बड़ी में यह उपवास लाभ के साथ किया जा सकता है इससे साधारण स्वास्थ्य में असाधारण उन्नति दृष्टिगोचर होती है।
(4)रसोपवास –
इस उपवास में अन्न तथा फलादि ठोस पदार्थ नहीं ग्रहण किये जाते केवल रसदार फलों के रस अथवा साग सब्जियों के सूप पर ही रहा जाता है। दूध लेना भी वर्जित होता है क्योंकि दूध की गिनती भी ठोस खाध पदार्थों में की जाती है इस उपवास में एनिमा लेते रहने से शरीर की सफाई अच्छी होती है।
(5)फलोपवास –
कुछ दिनों तक केवल रसदार फलों अथवा शाक- भाजी पर रहना फलोपवास कहलाता है। इस उपवास में भी कभी- कभी पेट साफ करने के लिये एनिमा लेते रहना चाहिए इस उपवास में किसी किसी को एक व फलाहार अनुकूल नहीं पड़ता है और पेट में गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है। ऐसे व्यक्तियों को पहले दो तीन दिनों का पूर्ण उपवास कर लेने के बाद इस फलोपवास का आरम्भ करना चाहिए। फलोपवास काल में जो फल आसानी से पच जाए उन्ही को काम में लाना उत्तम है यदि फल बिल्कुल ही अनुकूल न पड़ते हो तो सिर्फ पकी साग- भाजी खाकर रहना चाहिए तात्पर्य यह कि फलोपवास में जो साग भाजियां या फल अनुकूल पड़े उन्हीं को व्यवहार में लाना चाहिए क्योंकि कोई भी उपवास हो उसमें बदहजमी हरगिज न होने देना चाहिए खूनी बबासीर में २९ दिनों के इसी फलोपवास के प्रयोग से वह ऐसी गायब हुई कि फिर आज तक न लौटी।
(6)दुग्धोपवास –
इसे दुग्ध- कल्प भी कहते है कुछ दिनों तक दिन में चार पांच बार केवल दूध पी कर ही रहना दुग्धोपवास कहलाता है इस उपवास में जिस दूध का उपवास किया जाये वह स्वस्थ गाय का धारोष्ण होना चाहिए ।
(7)मठोपवास –
इसे मठा कल्प भी कहते हैं पाचन शक्ति यदि निर्बल हो तो दुग्धोपवास की जगह यह मठोपवास करना चाहिए। इस उपवास में जो मठा लिया जाये वह घी रहित एवं कम खट्टा होना चाहिए दुग्धोपवास अथवा मठोपवास आरम्भ करने के पहले यदि एक दिनों का पूर्णोपवास कर लिया जाय तो अधिक लाभ की सम्भावना रहती है।
ये उपवास डेढ़ दो महीने आसानी से चलाये जा सकते हैं इनसे शरीर के छोटे – मोटे रोगों का शमन तो ही जाता है साथ ही साथ सामान्य स्वास्थ्य में भी काफी उन्नति हो जाती है इन उपवास में जब कभी पेट भारी मालूम दे तो एनिमा का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
(8)पूर्णोपवास –
स्वेच्छापूर्वक विशुद्ध ताजे जल के अतिरिक्त किसी प्रकार की खाध वस्तु ग्रहण न करना पूर्णोपवास कहलाता है। इसमें उपवास सम्बन्धी अनेक आवश्यक नियमों का पालन करना होता है जिसके विषय में आगे लिखा गया है।
(9)साप्ताहिक उपवास –
सप्ताह में केवल एक दिन पूर्णोपवास नियमपूर्वक करना साप्ताहिक उपवास कहलाता है। इससे साधारण स्वास्थ्य ठीक रहता है और शरीर के रोगी होने की सम्भावना कम रहती है। आफिस में दिन दिन भर बैठ कर लिखने वाले कर्मचारियों को तथा अन्य लोगों को भी कम से कम यह उपवास जरूर करना चाहिए। उपवास के दिन एक दो बार एनिमा भी लिया जाय तो उत्तम है इस उपवास से अरुचि मिटती है सिर दर्द सुस्ती तथा अन्य कई शारीरिक और मानसिक व्याधियां आप से आप अच्छी हो जाती हैं।
(10)लघु उपवास –
तीन दिन से लेकर सात दिनों के पूर्णोपवास को लघु उपवास कहते हैं।
(11)कड़ा उपवास –
यह उपवास असाध्य रोगों के लिये है इसमें पूर्णोपवास के सभी नियमों को कड़ाई के साथ बरतना पड़ता है।
(12)टूट उपवास –
इसमें दो से सात दिनों का पूर्णोपवास करने के बाद कुछ दिनों तक हल्के प्राकृतिक भोजन पर कर पुनः उतने ही दिनों का उपवास करना होता है। उपवास और हल्के भोजन का यह क्रम तब तक जारी रहता है जब तक कि अभीष्ट की सिद्धि न हो जाय इस उपवास का प्रयोग कष्टसाध्य रोगों में प्रायः किया जाता है।
(13)दीर्घ उपवास –
इस उपवास में पूर्णोपवास बहुत दिनों तक चलाना होता है। जिसके लिये कोई निश्चित समय पहले से निर्धारित नहीं होता इसमें २१ से लेकर ५०-६० दिन भी लग सकते हैं प्रायः यह उपवास तभी भंग किया जाता है तब स्वाभाविक भूख जान पड़ने लगती है अथवा शरीर के सारे विजातीय द्रव्य के पच चुकने के बाद जब शरीर के आवश्यक अवयवों के पचने की नौवत आ जाने की सम्भावना हो जाती है।
यह उपवास जब शारीरिक दृष्टि से किया जाता है तो इसका लक्ष्य शरीर के विविध भागों में एकत्र हुये विजातीय द्रव्य के निष्कासन की ओर ही होता है और जब यह मन्तव्य पूरा हो जाता है तो उपवास तोड़ दिया जाता है। इस प्रकार का लम्बा उपवास बिना तैयारी किये तथा बिना उपवास कला का पूर्ण ज्ञान प्राप्त किये नहीं करना चाहिए अच्छा तो यह कि इस प्रकार के लम्बे उपवास किसी उपवास विशेषज्ञ की देख रेख में ही चलाये जावें अन्यथा बिना जाने बूझे लम्बे उपवासों का प्रयोग करने से तकलीफ और हानि दोनों हो सकती हैं।

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