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मंत्र की प्रचंड शक्ति और उसके प्रयोग का रहस्य

मंत्र की प्रचण्ड शक्ति और उसके प्रयोग का रहस्य

मन्त्र विद्या में शब्द शक्ति —मानसिक एकाग्रता—चारित्रिक श्रेष्ठता एवं अभीष्ट लक्ष्य में अटूट श्रद्धा के चार तथ्य का समावेश होता है। मन्त्र शक्ति से कितने ही प्रकार के चमत्कार एवं वरदान उपलब्ध हो सकते हैं यह सत्य है, पर उसके साथ ही यह तथ्य भी जुड़ा हुआ है कि वह मन्त्र उपरोक्त चार परीक्षाओं की अग्नि में उत्तीर्ण हुआ होना चाहिए। प्रयोग करने से पूर्व उसे सिद्ध करना पड़ता है। सिद्धि के लिए साधना आवश्यक है। इस साधना के चार चरण हैं इन्हीं का ऊपर उल्लेख किया गया है।


मन्त्र साधक को यम−नियमों का अनुशासन पालन करते हुए चारित्रिक श्रेष्ठता का अभिवर्धन करना चाहिए। क्रूरकर्मी, दुष्ट−दुराचारी व्यक्ति किसी भी मन्त्र को सिद्ध नहीं कर सकते। तान्त्रिक शक्तियाँ भी ब्रह्मचर्य आदि की अपेक्षा करती हैं। फिर देव शक्तियों का अवतरण जिस भूमि पर होना है उसे विचारणा, भावना और क्रिया की दृष्टि से सतोगुणी पवित्रता से युक्त होना ही चाहिए।
इन्द्रियों का चटोरापन मन की चंचलता का प्रधान कारण है। तृष्णाओं में—वासनाओं में और अहंकार तृप्ति की महत्वाकाँक्षाओं में भटकने वाला मन मृग−तृष्णा एवं कस्तूरी गन्ध में यहाँ−वहाँ असंगत दौड़ लगाते रहने वाले हिरन की तरह है। मन की एकाग्रता अध्यात्म क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण शक्ति है उसके संपादन के लिए अमुक साधनों का विधान तो है, पर उनकी सफलता मन को चंचल बनाने वाली दुष्प्रवृत्तियों का अवरोध करने के साथ जुड़ी हुई है। जिसने मन को संयत समाहित करने की आवश्यकता पूर्ण कर सकने योग्य अन्तःस्थिति का परिष्कृत दृष्टिकोण के आधार पर निर्माण किया होगा वही सच्ची और गहरी एकाग्रता का लाभ उठा सकेगा। ध्यान उसी का ठीक तरह जमेगा और तन्मयता के आधार पर उत्पन्न होने वाली दिव्य क्षमताओं से लाभान्वित होने का अवसर उसी को मिलेगा।
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अभीष्ट लक्ष्य में श्रद्धा जितनी गहरी होगी उतना ही मन्त्र बल प्रचण्ड होता चला जायगा। श्रद्धा अपने आप में एक प्रचण्ड चेतन शक्ति है। विश्वासों के आधार पर ही आकाँक्षाएँ उत्पन्न होती हैं और मनःसंस्थान का स्वरूप विनिर्मित होता है। बहुत कुछ काम तो मस्तिष्क को ही करना पड़ता है। शरीर का संचालन भी मस्तिष्क ही करता है। इस मस्तिष्क को दिशा देने का काम अन्तःकरण के मर्मस्थल में जमे हुए श्रद्धा, विश्वास को है। वस्तुतः व्यक्तित्व का असली प्रेरणा केन्द्र इसी निष्ठा की धुरी पर घूमता है। गीताकार ने इस तथ्य का रहस्योद्घाटन करते हुए कहा है—’यो यच्छद्धः स एव स’ जो जैसी श्रद्धा रख रहा है वस्तुतः वह वही है। अर्थात् श्रद्धा ही व्यक्तित्व है। इस श्रद्धा को इष्ट लक्ष्य में—साधना की यथार्थता और उपलब्धि में जितनी अधिक गहराई के साथ—तन्मयता के साथ—नियोजित किया गया होगा, मन्त्र उतना ही सामर्थ्यवान बनेगा। माँत्रिक को चमत्कारी शक्ति उसी अनुपात से प्रचण्ड होगी। इन तीनों चेतनात्मक आधारों को महत्व देते हुए जिसने मन्त्रानुष्ठान किया होगा निश्चित रूप से वह अपने प्रयोजन में पूर्णतया सफल होकर रहेगा।
मन्त्र का चौथा आधार है शब्द शक्ति। अमुक अक्षरों का एक विशिष्ट क्रम से किया गया गुन्थन शब्द−शास्त्र के गूढ़ सिद्धान्तों पर तत्वदर्शी अध्यात्मवेत्ताओं ने किया होता है। मन्त्रों के अर्थ सरल और सामान्य हैं। अर्थों में दिव्य जीवन की शिक्षाएँ और दिशाएँ पाई जाती हैं। उन्हें समझना भी उचित ही है। पर मन्त्र की शक्ति इन शिक्षाओं में नहीं उनकी शब्द रचना से जुड़ी हुई है। वाह्य यन्त्रों को अमुक क्रम से बजाने पर ध्वनि प्रवाह निसृत होता है। कण्ठ को अमुक आरोह−अवरोहों के अनुरूप उतार−चढ़ाव के स्वरों से युक्त करके जो ध्वनि प्रवाह बनता है उसे गायन कहते हैं। ठीक इसी प्रकार मुख के उच्चारण मन्त्र को अमुक शब्द क्रम के अनुसार बार−बार लगातार संचालन करने से जो विशेष प्रकार का ध्वनि प्रवाह संचारित करने से जो विशेष प्रकार का ध्वनि प्रवाह संचारित होता है वही मन्त्र की भौतिक क्षमता है। मुख से उच्चारित मन्त्राक्षर सूक्ष्म शरीर को प्रभावित करते हैं। उसमें सन्निहित तीन ग्रन्थियों, षटचक्रों—षोडश माष्टकाडों—चौबीस उपत्यिकाओं एवं चौरासी नाड़ियों को झंकृत करने में मन्त्र का उच्चारण क्रम बहुत काम करता है। दिव्य शक्ति के प्रादुर्भूत होने से यह शब्दोच्चार भी एक बहुत बड़ा कारण एवं माध्यम है।
भगवन्! आपने इस संसार में लाल, पीले, हरे, सफेद और नीले जैसे सुन्दर और आकर्षक रंग बनाये हैं। तब मैंने ही पूर्व जन्म में कौन−सा पाप किया था जिसके कारण श्यामवर्ण मेरे ही हिस्से में आया। मेरी कालिमा किसी को पसन्द नहीं। हर व्यक्ति मेरी कुरूपता को देखकर नाक, भौं सिकोड़ता है। यह आपका सरासर अन्याय है। काले रंग ने उलाहने के स्वर में विधाता से कहा।विधाता ने मुस्कराते हुए कहा−’वत्स! तुम कितने भोले हो। तुम्हें यह भी मालूम नहीं कि मैं इस संसार में किसी वस्तु को कोई रंग प्रदान नहीं करता। सारे रंग सूर्य की किरणों में समाये हुए हैं। जिस वस्तु में उनका रंग खींचकर अपने में पचालेने और फिर उसको विकीर्ण कर देने की जैसी क्षमता है, वैसा ही रंग उसे प्राप्त हो जाता है। तू किसी वस्तु को लेकर देना नहीं जानता, सब रंगों को अपने भीतर भरता भर है निकालने का नाम नहीं लेता। इस दशा में कालिमा तो तेरे पल्ले बँधेगी ही। मुझे दोषी ठहराने से क्या लाभ?
मन्त्र विद्या में मुख से तो पीये और हलके प्रवाह क्रम से ही शब्दों का उच्चारण होता है, पर उनके बार−बार लगातार दुहराये जाने से सूक्ष्म शरीर के शक्ति संस्थानों का ध्वनि प्रवाह बहने लगता है। वहाँ से अश्रव्य कर्णातीत ध्वनियाँ या प्रचंड प्रवाह प्रादुर्भूत होता है। इसी में मन्त्र साधक का व्यक्तित्व ढलता है और उन्हीं के आधार पर वह अभीष्ट वातावरण बनता है जिसके लिए मन्त्र साधना की गई मन्त्र का जितना महत्व है, साधना विधान का जितना महात्म्य है उतना ही आवश्यक यह भी है कि याँत्रिक अपनी श्रद्धा, तन्मयता और विधि प्रक्रिया में निष्ठावान रहकर अपना व्यक्तित्व इस योग्य बनाये कि उसका मन्त्र प्रयोग सही निशाना साधने वाली बहुमूल्य बन्दूक का काम कर सके।
शब्द शक्ति का महत्व विज्ञानानुमोदित है। स्थूल, श्रव्य, शब्द भी बड़ा काम करते हैं फिर सूक्ष्म कर्णातीत अश्रव्य ध्वनियों का महत्व तो और भी अधिक है। मन्त्र जप में उच्चारण तो धीमा ही होता है उससे अतीन्द्रिय शब्द शक्ति को ही प्रचंड परिणाम में उत्पन्न किया जाता है।
ध्वनि तरंगें पिछले दिनों उच्चारण से उद्भूत होकर श्रवण की परिधि में ही सीमित रहती थीं। प्राणियों द्वारा शब्दोच्चारों एवं वस्तुओं से उत्पन्न आघातों से अगणित प्रकार की ध्वनियाँ निकलती है उन्हें हमारे कान सुनते हैं। सुनकर कई तरह के ज्ञान प्राप्त करते हैं—निष्कर्ष निकालते हैं और अनुभव बढ़ाते हुए उपयोगी कदम उठाते हैं। यह शब्द का साधारण उपयोग हुआ।
विज्ञान ने ध्वनि तरंगों में सन्निहित असाधारण शक्ति को समझा है और उनके द्वारा विभिन्न प्रकार के क्रिया−कलापों को पूरा करना अथवा लाभ उठाना आरम्भ किया है। वस्तुओं की मोटाई नापने—धातुओं के गुण, दोष परखने का काम अब ध्वनि तरंगें ही प्रधान रूप में पूरा करती है। कार्बन ब्लैक का उत्पादन वस्त्रों की धुलाई, रासायनिक सम्मिश्रण, कागज की लुगदी, गीलेपन को सुखाना, धातुओं की ढलाई, प्लास्टिक धागों का निर्माण, प्रभृति उद्योगों में ध्वनि तरंगों के उपयोग से एक नया व्यावसायिक अध्याय आरम्भ हुआ है।
वी.एफ. गुडरिच कम्पनी का हामोजिनाइजिंग, दुग्ध संयन्त्र बहुत ही लोकप्रिय हुआ है। जनरल मोटर्स ने भी ‘सोनी गेज’ यन्त्र बनाया है। इनके द्वारा ध्वनि तरंगों का उपयोग कई महत्वपूर्ण कार्यों के लिए किया जाता है। आयोवा स्टेंट कालेज, अल्ट्रा सोनिक कारपोरेशन ने भी ऐसे ही कई उपयोगी यन्त्र बनाये हैं।
ध्वनि तरंगें कम्पन होती हैं, वे रेडियो तरंगों की तरह शून्य में यात्रा नहीं करती। मनुष्य के कानों द्वारा सुनी जा सकने योग्य थोड़ी सी ही हैं। जो कानों की पकड़ से नीची या ऊँची हैं उनकी संख्या कितनी गुनी अधिक है। शब्द को शक्ति के रूप में परिणित करने के लिए जिन ध्वनि तरंगों का प्रयोग किया जा रहा है उन्हें अल्ट्रा सोनिक (अस्तिवन) और सुपर सोनिक (महास्वन) संज्ञाएँ दी जाती हैं। यह ध्वनियाँ निकट भविष्य में सरलतापूर्वक विद्युत शक्ति में परिणत की जा सकेगी और तब उस शब्द स्रोत का ध्वनि प्रवाह का उपयोग किया जा सकेगा ऐसा वैज्ञानिक मानते हैं।
यह ध्वनि तरंगें देखने, सुनने, समझने में नगण्य सी हैं—उनका छोटा अस्तित्व उपहासास्पद सा लगता है, पर जब उनमें सन्निहित प्रचंड शक्ति का आभास मिलता है तो आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है। यह ध्वनि तरंगें इतना बड़ा काम करती हैं जितना विशालकाय एवं शक्ति शाली संयंत्र भी नहीं कर सकते। यन्त्र विज्ञान द्वारा इसी सूक्ष्म शक्ति का प्रयोग किया जाता है।
प्रकाश और ध्वनि के कम्पनों का स्वरूप समझने के लिए हमें समुद्र में उठने वाली लहरों को देखना चाहिए वे ऊपर उठती और नीचे गिरती हैं तथा एक क्रम−व्यवस्था की दूरी के साथ अग्रगामी होती हैं। प्रकाश और ध्वनि के कम्पनों का भी यही हाल है। विद्युत चुम्बकीय तरंगें प्रकाश की तरंगों से मिलती−जुलती होती हैं। किन्हीं दो उतार−चढ़ावों के बीच की दूरी को तरंग की लम्बाई कहा जाता है किसी बिन्दु पर से एक सेकेंड में गुजरती तरंग के उतार−चढ़ाव को लहर की फ्रीक्वेंसी—कम्पनांक कहा जाता है। तरंग की गति में तरंग की लम्बाई का भाग देकर, इन कंपनांकों का नाम निश्चित किया जाता है।
ध्वनि की लहरों का वायु के प्रवाह से भी बहुत कुछ सम्बन्ध रहता है। वे वायु प्रवाह के साथ अधिक सुविधापूर्वक जाती हैं जबकि अवरोध की दिशा में उनका बल बहुत क्षीण रहता है।
रेडियो तरंगें, शब्द तरंगें, माइक्रो लहरें, टेलीविजन और रैडार की तरंगें, एक्स किरणें, गामा किरणें, लेसर किरणें, मृत्यु किरणें, इन्फ्रारेड तरंगें, अल्ट्रा वायलेट तरंगें आदि कितनी ही शक्ति धाराएँ इस निखिल ब्रह्माण्ड में निरन्तर प्रवाहित रहती है। इन तरंगों की भिन्नता उनकी लम्बाई के आधार पर नापी जाती है। मीटर, सेन्टीमीटर, माइक्रोन, मिली मीटर, आँगस्ट्रोन इनके मापक पैमाने हैं।
यह ध्वनि तरंगें अब विभिन्न भौतिक प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त की जाने लगी हैं और उनके अनेकों उपयोगी लाभ उठाये जा रहे हैं।
हानिकारक कीटाणुओं का नाश करने में अश्रव्य ध्वनियों से बड़ी सहायता मिल रही है। दूध में से मक्खन निकालना, धातुओं तथा रसायनों को एक दूसरे के साथ घोट देना—कोहरा हटा देना—जैसे अनेकों महत्वपूर्ण कार्य ध्वनियाँ करती हैं। युद्ध समय में जलयानों तथा वायुयानों की महत्वपूर्ण जानकारियाँ रैडार तथा ऐसे ही अन्य यन्त्रों से मिलती है। कुछ समय पहले बिजली के उपकरणों द्वारा कितने ही रोगों का इलाज किया जाता था उसकी जगह अब अश्रव्य ध्वनियों का प्रयोग करके सफल उपचार किये जा रहे हैं।
शब्द केवल जानकारी ही नहीं और भी बहुत कुछ देता है। खाद और पानी के बाद अब पौधों के लिए मधुर ध्वनि प्रवाह भी एक उपयोगी खुराक मानी जाने लगी है। यूगोस्वालिया में फसल को सुविकसित बनाने के लिए खेतों पर अमुक स्तर की वाद्य लहरियाँ ध्वनि विस्तारक यन्त्रों से प्रवाहित की गई और उसका परिणाम उत्साहवर्धक पाया गया। हालैण्ड के पशु पालकों ने गायें दुहते समय संगीत बजाने का क्रम चलाया और अधिक दूध पाया। निद्रा, उत्तेजना और विकास की त्रिविध प्रक्रियाएँ वृक्ष और वनस्पतियों पर देखी गई। पशुओं की श्रमशीलता, प्रजनन शक्ति, बलिष्ठता एवं दूध देने की क्षमता को संगीत ने बढ़ाया। मक्का पर संगीत के कतिपय प्रयोग करके उनकी वृद्धि में सफलता प्राप्त करने की दृष्टि से एक अमेरिकी कृषक जार्ज स्मिथ ने अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की।
शब्द शक्ति को ताप में परिणित किया जा सकता है। शब्द जब मस्तिष्क के ज्ञानकोषों से टकराते हैं तो हमें कई प्रकार की जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। यदि उन्हें पकड़ कर ऊर्जा में परिणित किया जाय तो वे बिजली ताप प्रकाश चुम्बकत्व के रूप में कितने ही प्रकार का क्रिया−कलाप सम्पन्न कर सकने योग्य बन सकते हैं।
ताप को शक्ति का प्रतीक माना गया है। विभिन्न प्रकार के ईधन जलाकर अनेकों शक्ति धाराएँ उत्पन्न की जाती हैं। शक्ति और ताप को अब एक ही मान लिया गया है। इस शृंखला में ध्वनि को भी एक शक्ति उत्पादक ईधन मान लिया गया है। वह दिन दूर नहीं जब शब्द को ईधन नहीं वरन् एक स्वतन्त्र एवं सर्व समर्थ शक्ति माना जायगा। तभी मन्त्र शक्ति की यथार्थता ठीक तरह समझी जा सकेगी।
ध्वनियाँ तीन प्रकार से उत्पन्न होती हैं (1)वायु द्वारा (2) जल द्वारा (3)पृथ्वी द्वारा। वायु की तरंगों द्वारा प्राप्त होने वाली ध्वनि की गति प्रति सेकेंड 1088 फुट होती है। जल तरंगों की गति इससे तेज होती है। उस माध्यम से वे एक सेकेंड में 4900 फुट चलती है। पृथ्वी के माध्यम से यह गति और भी तेज होती है अर्थात् एक सेकेंड में 16400 फुट।
प्राणायाम द्वारा वायु तत्व का—स्नान, आचमन, अर्घदान आदि द्वारा जल का—दीपक, धूपबत्ती, हवन आदि द्वारा अग्नि का प्रयोग करके मन्त्रानुष्ठान से वे त्रिविध उपचार किये जाते हैं जिनसे शब्द शक्ति को प्रचंड बनने का अवसर मिल सके।
हर ध्वनि अपने ढंग से अलग−अलग कंपन उत्पन्न करती है। इसी आधार पर हमारे कानों के पर्दे अलग−अलग व्यक्तियों की आवाज को आँखें बन्द होने पर भी पहचान लेते हैं। ध्वनि कम्पनों−ध्वनि तरंगों के घनत्व के आधार पर हम असंख्य प्रकार की ध्वनियों की भिन्नता अनुभव करते हैं। अन्धे लोगों को अपने कानों की सहायता से ही समीपवर्ती वातावरण में हो रही हलचलों का—व्यक्तियों तथा प्राणियों के अस्तित्व का पता लगाना पड़ता है। कान इस बात के अभ्यस्त हो जाते हैं कि विभिन्न माध्यमों से उत्पन्न होने वाले ध्वनि प्रवाह का अन्तर कर सकें और स्थिति का अथवा प्राणियों की हलचलों का पता लगा सकें।
नादयोग की साधना द्वारा अनन्त अन्तरिक्ष में निरन्तर बहने वाली ध्वनि तरंगों को सुना जाता है और उनमें से अपने काम की तरंगों के साथ संपर्क बनाकर भूतकाल में जो हो चुका है उसकी—भविष्य के लिए जो सम्भावना बन रही है उसकी—तथा वर्तमान में किस व्यक्ति या किस परिस्थिति द्वारा क्या हलचलें उत्पन्न की जा रही हैं उनका पता लगाया जा सकता है। नादयोग की शब्द साधना वस्तुतः मन्त्र विज्ञान का ही एक अंग है।

जिन ध्वनियों के कम्पन प्रति सेकेंड 100 से 300 तक होते हैं वे मनुष्य के कानों से आसानी के साथ सुने जा सकते हैं। इससे बहुत अधिक या बहुत कम कम्पन वाले शब्द आकाश में घूमते हुए भी हमारे कानों द्वारा सुने समझे नहीं जाते। इस प्रकार के शब्द प्रवाह को ‘अनसुनी ध्वनियाँ’ कहते हैं। उन्हें ‘सुपर सोनिक रेडियो मीटर’ नामक यन्त्र से कान द्वारा सुना जा सकता है।
इलेक्ट्रॉनिक्स के उच्च विज्ञानी ऐसा यन्त्र बनाने में सफल नहीं हो सके हैं जो श्रवण शक्ति की दृष्टि से कान के समान सम्वेदनशील हो। कानों की जो झिल्ली आवाज पकड़कर मस्तिष्क तक पहुँचती है, उसकी मुटाई एक इञ्च के ढाई हजारवें हिस्से के बराबर हैं। फिर भी वह कोई चार लाख प्रकार के शब्द भेद पहचान सकती है और उनका अन्तर कर सकती है। अपनी गाय को या मीटर की आवाज को हम अलग से पहचान लेते हैं यद्यपि लगभग वैसी ही आवाज दूसरी गायों की या मोटरों की होती है, पर जो थोड़ा सा भी अन्तर उसमें रहता है, अपने कान के लिए उतने से ही अन्तर कर सकना और पहचान सकना सम्भव हो जाता है। कितनी दूर से, किस दिशा से, किस मनुष्य की आवाज आ रही है, यह पहचानने में हमें कुछ कठिनाई नहीं होती। यह कान की सूक्ष्म सम्वेदनशीलता का ही चमत्कार है। टेलीफोन यन्त्र इतनी बारीकियाँ नहीं पकड़ सकता है।
काने से लेकर मस्तिष्क तक स्वसंचालित तंत्रिकाओं का जाल बिछा है। शब्द के कम्पन इनसे टकराकर प्रतिध्वनि उत्पन्न करते हैं, वह मस्तिष्क में पहुँचती है तब सुनने की बात पूरी होती है। कान में आवाज के घुसने और मस्तिष्क को उसका बोध होने के बीच लगभग एक सेकेंड समय लग जाता है।
मुँह बन्द करके गुनगुनाया जाय तो भी उसकी आवाज मस्तिष्क तक पहुँचती है। ऐसी दशा में कान के समीप वाली जबड़े की हड्डी उन शब्दों को सीधे मुँह से मस्तिष्क तक पहुँचा देती है। इससे स्पष्ट है कि कान का कार्य क्षेत्र एक इञ्च गहरी नली तक ही सीमित नहीं है वरन् जबड़े के इर्द−गिर्द तक फैला है। गाल पर चपत मारने से कान सुन्न हो जाते हैं। इसका कारण उस क्षेत्र की उग्र हलचल का कान पर प्रभाव पड़ना ही है।
कान में प्रवेश करने वाली ध्वनि तरंगों का वर्गीकरण करके उन्हें छने हुए रूप में मस्तिष्क तक पहुँचाने का काम ‘यूस्टोयिओ’ नली सम्पन्न करती है। शोरगुल के बीच जब यह नली थक जाती है तो अक्सर बहरापन सा लगने लगता है। इसी तरह की आन्तरिक थकान को दूर करने के लिए जमुहाइयां आती है।
श्रवण शक्ति का बहुत कुछ सम्बन्ध मन की एकाग्रता से है। यदि किसी बात में दिलचस्पी कम हो तो पास में ही बहुत कुछ बकझक होते रहने पर भी अपने पल्ले कुछ नहीं पड़ेगा। किन्तु यदि दिलचस्पी की बात हो तो फुसफुसाहट से भी मतलब की बातें आसानी से सुनी समझी जा सकती हैं।
मनुष्य के कान केवल उन्हीं ध्वनि तरंगों को अनुभव कर सकते हैं जिनकी संख्या प्रति सेकेंड 20 से लेकर 20 सहस्र तक की होती है। इससे कम और अधिक संख्या वाले ध्वनि प्रवाह होते तो हैं, पर वे मनुष्य की कर्णेन्द्रिय द्वारा नहीं सुने जा सके।
इस तथ्य को समझने पर मानसिक जप का महत्व समझ में आता है। उच्चारण आवश्यक नहीं। मानसिक शक्ति का प्रयोग करके—ध्यान भूमिका में सूक्ष्म जिह्वा द्वारा मन ही मन जो जप किया जाता है उसमें भी ध्वनि तरंगें भली प्रकार उठती रहती हैं।
रेडियो यन्त्र केवल कुछ सीमित और सम्बन्धित फ्रीक्वेंसी पर चल रही ध्वनि तरंगें ही पकड़ पाते हैं। समीपवर्ती फ्रीक्वेंसी के साथ यदि उनके साथ सम्बन्ध न हो तो वे यन्त्र सुन नहीं सकेंगे। कान की स्थिति उनकी अपेक्षा लाख गुनी अच्छी है। वे अनेक फ्रीक्वेन्सियों पर चल रहे शब्द प्रवाहों को एक साथ पकड़ और सुन सकते हैं।
नाक में जिस स्तर की गन्ध ग्राही शक्ति है उस स्तर की पकड़ कर सकने वाला यन्त्र अभी तक बनाया नहीं जा सका।
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नादयोग द्वारा आकाश−व्यापी, अन्तर्ग्रही तथा अन्तःक्षेत्रीय दिव्य शक्तियों का सुना जाना सम्भव है और उस आधार पर वैसा बहुत कुछ जाना जा सकता है जो स्थूल मस्तिष्कीय चेतना अथवा उपलब्ध साधनों से जान सकना सम्भव नहीं है। विश्व−व्यापी शब्द समुद्र में मन्त्र साधक अपनी प्रचंड हलचलें समाविष्ट करता है और ऐसे शक्तिशाली ज्वार−भाटे उत्पन्न करता है जिनके आधार पर अभीष्ट परिस्थितियाँ विनिर्मित हो सके। यही है मन्त्र विद्या के चमत्कारी क्रिया−कलाप का रहस्य।
लोग उथली एकाँगी मन्त्र साधना करते हैं फलतः वे उस सत्परिणाम से वंचित रह जाते हैं जो सर्वांगपूर्ण मन्त्र साधना करने से निश्चयपूर्वक प्राप्त हो सकता है। ध्यान रखा जाय मन्त्र विद्या की सफलता के चार आधार हैं—शब्द शक्ति, मानसिक एकाग्रता, चारित्रिक श्रेष्ठता एवं लक्ष्य के प्रति अटूट श्रद्धा। चारों आधारों को साथ लेकर चलने वाली मन्त्र साधना कभी निष्फल नहीं होती।

आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा

आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा का प्रभाव शरीर के कई अंगों पर होता है जो इस प्रकार है-

त्वचा में ऊर्जा को सम्माहित करना (त्वचा को ऊर्जा प्रदान करना)-

आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से उपचार करने से शरीर की त्वचा को ऊर्जा मिलती है जिसके फलस्वरूप कई प्रकार की बीमारियां ठीक हो जाती है। आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा उपचार करने पर शरीर की त्वचा में ऊर्जा सम्माहित होती है यह जानने के लिए त्वचा की संरचना को जानना जरूरी है।
शरीर की त्वचा की संरचना-
मनुष्य का शरीर लगभग दो वर्ग मीटर लंबी त्वचा से ढका होता हैं। त्वचा की ऊपरी परत को बाहरी त्वचा (एपिडरमिस) कहते है तथा इसकी बीच की परत को कोरियम और सबसे नीचे की परत को अधस्त त्वचा कहते हैं। त्चचा के इन भागों में नाड़ियों के आखिरी सिरे होते हैं। इसलिए ही त्वचा किसी चीज या हाथ के उंगलियों आदि के स्पर्श (छू जाने) के द्वारा दबाव और दर्द को महसूस करती है।
        त्चचा के लगभग एक वर्ग सेंटीमीटर भाग में 25 संवेदी अंग होते हैं जो स्पर्श ज्ञान कराते हैं। ये एक से तीन ताप, लगभग 6 से 23 शीत (ठंड) तथा 100 से 200 तक दर्द को महसूस करता है। जबकि अन्य प्रकार के अनुभव जैसे झनझनाहट, खुजली तथा कंपन आदि संग्राहकों के परिणाम नहीं होते बल्कि उत्तेजना के साथ मिली प्रतिक्रिया होती है।

त्वचा के ज्ञान संग्राहक निम्नलिखित होते हैं-
1. पेसिनियन कार्पसल
2. क्रौसेस
3. मेइजनर्स कार्पसल
4. रूफीनी के कार्पसल
5. स्वतंत्र तंत्रिका के छोर
त्वचा के ज्ञान संग्राहक अंगों की आकार तथा स्वरूप इस प्रकार है-
1. पेसिनियन कार्पसल- इसका आकार कटे हुए प्याज की परतों की सी परत वाले होते हैं ये गहरे दबाव के संग्राहक कोरियम तथा अधस्त्वचा के बीच के क्षेत्र में स्थित होता है तथा इसके साथ ही अधस्त्वचा की परत में भी होता है। यह गहरे दबाव के भारी स्वरूप का अनुभव कराता है।
2. क्रौसेस- ये संग्राहक कोरियम की ऊपरी परत के पास स्थित होता है। यह शीत (ठंड) के संग्राहक होता है।

3. मेइजनर्स कार्पसल- ये संग्राहक बहुत सारे होते हैं तथा ये आपस में एक-दूसरे से लिपटे होते हैं। यह स्पर्श चेतना बिन्दु होते है। मेइजनर्स कार्पसल कोरियम में स्थित होते हैं। यह पैरों तलुवों, हथेली, उंगलियों के नोकों में बहुत अधिक संख्या में होते हैं। यह हल्के स्पर्श का अनुभव होता है।

 4. रूफीनी के कार्पसल- ये संग्राहक ऊष्मा तथा ताप लिए होता है तथा ये कोरियम में स्थित होता है। यह ताप संग्राहक का अनुभव कराता है।

5. स्वतंत्र तंत्रिका के छोर- इसमें असंख्य नाड़ियों की शाखाओं के महीन छेद होते हैं जो दर्द के संग्राहक होते हैं। यह दर्द का अनुभव कराता है।


त्वचा की कार्य प्रणाली-
1. त्वचा वसा तथा जल का संग्रहन करती है। पसीना तथा वसायुक्त ग्रंथियों का स्राव त्वचा का पोषण कर शुष्कता से बचाने का कार्य करता है। अधस्त त्वचा की वसा. सर्दी तथा बाहरी आघातों से शरीर की रक्षा करता है।
2. त्वचा शरीर के तापमान को नियंत्रण में रखती है। यह शरीर के तापमान पर नियंत्रण, रक्त-संचारण तथा स्वेद-ग्रंथियों के स्राव की सहायता से करता है।
3. त्वचा वसा तथा जल का संग्रहण करती है। पसीना तथा वसायुक्त गंथियों का स्राव त्वचा का पोषण करके शुष्कता से बचाव करता है।
4. अधस्त्वचा की वसा सर्दी तथा बाहरी आघातों से सुरक्षा करती है।
5. त्वचा शरीर के तापमान पर नियंत्रण करता है।
6. त्वचा में पाई जाने वाले बोधक अंग बाहरी खतरे की चेतावनी देते हैं।
7. त्वचा पसीना तथा वसायुक्त ग्रंथियां शरीर से अवांछित पदार्थो को बाहर निकालती है और तथा श्वास लेने की क्रिया में सहायता करती है।
8. त्वचा सूर्य की अल्ट्रा-वायलेट किरणों का शोषण करती है और विटामिन `डी´का निर्माण करती है जिसके फलस्वरूप बच्चों को रिकेट्स रोग नहीं होता है।
त्वचा का रंग-
          शरीर की बाहरी त्वचा के कोरनियम त्वचा के नये कोषों का निर्माण करती है और मरे हुए कोषों को रूसी व पपड़ी के रूप में बाहर की ओर निकलता है। त्वचा की ऊपरी परत में स्थित मेलानिन रंजक त्वचा के रंग को बनाए रखता है। त्वचा की ऊपरी परत में मेलानिक की मात्रा जितनी ज्यादा होगी उतना ही अधिक त्वचा का रंग काला होगा।
शरीर के विभिन्न भागों में पाई जाने वाली त्वचा की मोटाई-
         शरीर के विभिन्न भागों की त्वचा की मोटाई अलग-अलग होती है लेकिन औसत रूप से देखा जाए तो त्वचा की मोटाई 0.3 से 0.1 मि. मी. होती है। गर्दन, पलकों तथा माथे की त्वचा की मोटाई 0. 04 से 0.1 मि. मी. होती है जबकि हाथ की हथेली की मोटाई 0.6 से 1.2 मि. मी. होती हैं। ठीक इसी प्रकार पैर के तलुवों की त्वचा की मोटाई 1.7 से 2.8 मि. मी. होती है। एड़ियों की त्वचा और भी मोटी हो सकती है।
        अंधस्त त्वचा की मोटाई लगभग 1.7 से 2.8 मि. मी. होती है पलकों पर इस त्वचा की मोटाई 0.6 मि. मी. तथा माथे पर इस त्वचा की मोटाई 1.5 मि.मी. होती है तथा मस्तिष्क पर इस त्वचा की मोटाई 2 मि. मी. होती है और गर्दन पर इस त्वचा की मोटाई लगभग 4 से 5 मि. मी. होती है।
        अन्तर-त्वचा की वसा त्वचा का सबसे मोटा भाग है और यह त्वचा नितंबों, गालों, पेट तथा स्त्रियों के स्तनों पर होता है। वसामय तन्तु अण्डकोष, लिंग, पलकों, तथा लघु भगोष्ठ में नहीं होता है।

अंगमर्दक चिकित्सा की विशेषताएं

परिचय-

           आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से रोगी व्यक्ति का इलाज करने से पहले इसके बारे में बहुत सी बातों को जान लेना बहुत जरूरी है और फिर इसके बाद रोगी व्यक्ति का इलाज करना चाहिए।
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के बारे में निम्नलिखित बातें-
1. आमुख- वैसे यह आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा परावर्ती चिकित्सा का भाग नहीं है लेकिन कुछ आम चिकित्साओं के लिए जैसे- पेट के रोग, अधिक जुकाम, तेज सिरदर्द, रक्तचाप आदि के लिए लाभकारी है। वैसे देखा जाए तो इस आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा प्रणाली का वर्णन एवं उक्त विकारों के लिए स्थानीय बिन्दुओं पर दबाव देने की पद्धति का उल्लेख करना जरूरी है क्योंकि यह परावर्ती चिकित्सकों के लिए बहुत ही लाभकारी सिद्ध होगा।
           मनुष्य के शरीर पर आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार कई व्यक्तियों पर दबाव देने का समय भिन्न-भिन्न होता है जो इस प्रकार हैं-
व्यक्तिबिन्दु पर दबाव देने का समय
वयस्क व्यक्ति5 से 15 मिनट तक
7 वर्ष से अधिक लेकिन वयस्कता से पूर्व व्यक्ति3 से 10 मिनट तक
7 वर्ष से कम उम्र के बच्चे3 से 7 मिनट
1 वर्ष से कम उम्र  के बच्चे1 से 5 मिनट तक
मनुष्य की शारीरिक बिन्दुओं पर उम्र के अनुसार ही दबाव देना चाहिए।
2. आवृति- मनुष्य के शरीर की बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए आवृत्ति बीमारी की स्थिति पर निर्भर करती है। एक दिन में एक बार से अधिक भी दबाव दिया जा सकता है या फिर सप्ताह में 7 बार या एक दिन के अन्तर से लेकिन ध्यान यह रखना चाहिए कि ये सब नियम रिफ्लेक्सलॉजी के लिए लागू नहीं होते हैं। इसके साथ-साथ परावर्ती उपचार के बिन्दुओं पर भी ध्यान रखना चाहिए। सभी बिन्दुओं पर दबाव समय के अनुसार ही देना चाहिए।
3. उंगलियों के द्वारा दबाव देना- शरीर के बिन्दुओं पर 10 से 15 सेकेण्ड के लिए दबाव दिया जा सकता है लेकिन यह दबाव इतना तेज होना चाहिए कि रोगी व्यक्ति दबाव को महसूस कर सके। लेकिन दबाव इतना तेज भी नहीं देना चाहिए कि रोगी व्यक्ति के शरीर के बिन्दु वाले स्थान पर निशान पड़ जाए।
4. सामान्य निर्देश- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार किसी भी व्यक्ति का इलाज शुरू करते समय, यह ध्यान देना चाहिए कि जहां पर रोगी व्यक्ति का इलाज किया जा रहा है वह स्थान अधिक तापमान, अधिक ठण्डा या फिर अधिक गर्म न हो। रोगी व्यक्ति का इलाज करने के लिए, उसे सुविधाजनक स्थिति में बैठाकर करना चाहिए। रोगी के शरीर की बिन्दुओं पर दबाव देते समय हाथ की उंगली की गति इतनी तेज होनी चाहिए कि एक मिनट में लगभग 100 बार प्रेशर दे रहे हो। रोगी के शरीर की संवेदनशील त्वचा पर दबाव देने से पहले टेलकम पाउडर छिड़क लेना चाहिए ताकि दबाव वाली जगह पर सूजन न हो।
5. पेट- रोगी के पेट से सम्बन्धित रोगों को ठीक करने के लिए पेट के नौ बिन्दुओं पर दबाव देना चाहिए और पेट के इन बिन्दुओं पर दबाव हल्का देना चाहिए।
पेट की नौ बिन्दुएं निम्नलिखित हैं-
1. पेट के ऊपर पहला बिन्दु उस भाग पर होता है जहां पर छाती की दोनों पसलियां आपस में एक-दूसरे से मिलती है।
2. रोगी के पेट का दूसरा बिन्दु नाभि से लगभग दो इंच ऊपर पेट की छोटी आंतके पास होता है।
3. पेट की तीसरा बिन्दु पेट के निचले भाग जहां पर मूत्रपिण्ड होता है, उस जगह पर स्थित होती है।
4. पेट का चौथा बिन्दु तीसरे बिन्दु से 45 डिग्री का कोण बनाते हुए, दाहिनी तरफ नाभि से 2 इंच तथा श्रेणि अस्थि के पास, जहां पर सीकम या बड़ी आंतका आखिरी भाग है वहां पर स्थित होता है।
5. पेट का पांचवा बिन्दु पेट के दाईं ओर छाती की पसली के नीचे पेट के किनारे पर, जहां लीवर है वहां स्थित होता है।
6. पेट का छठा बिन्दु पेट के बाईं तरफ ठीक पांचवे बिन्दु के सामने जहां पर स्पलीन है वहां पर स्थित होता है।
7. पेट का सातवां बिन्दु छठे बिन्दु के नीचे की सीध में जहां पर डिसेन्डिंग कोलन है वहां पर स्थित होता है।
8.  पेट का आठवां बिन्दु सातवें बिन्दु से चार उंगलियों के नीचे तिर्यक रेखा में जहां सिग्माइड है वहां पर स्थित होता है।
9. पेट का नौवा बिन्दु तीसरे बिन्दु से ठीक दो इंच नीचे जहां पर रेक्टम तथा मलाशय है वहां पर स्थित होता है।
        जब पेट की इन बिन्दुओं पर दबाव देने की आवश्यकता हो उस समय  खाना नहीं खाना चाहिए अर्थात इन बिन्दुओं पर दबाव खाली पेट देना चाहिए। जब इन बिन्दुओं पर दबाव दे रहे हो तो दबाव देने से पहले श्वास लेना चाहिए फिर इसके बाद श्वास को रोककर दबाव देना चाहिए। इसके बाद दबाव कम करते समय नि:श्वास (श्वास छोड़े) करें।
पेट के नौ बिन्दुओं पर दबाव देने के नियम निम्नलिखित हैं-
  • पेट के नौ बिन्दुओं पर दबाव एक बार में कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए देना चाहिए।
  • पेट के नौ बिन्दुओं पर दबाव एक बिन्दु से नौ बिन्दु तक क्रमानुसार देना चाहिए और दबाव पेट के ऊपरी भाग से शुरू करके मूत्रद्वार तक देना चाहिए।
  • पेट के नौ बिन्दुओं पर दबाव देते समय हाथ की दाहिनी हथेली को नीचे तथा बायीं हथेली को ऊपर रखना चाहिए।
  • पेट के नौ बिन्दुओं पर दबाव देने से पहले लम्बी गहरी श्वास लेना चाहिए फिर जब दबाव को कम कर रहे हो या फिर दबाव देना बंद कर रहे हो तब श्वास को छोड़ना चाहिए।
  • पेट के नौ बिन्दुओं पर दबाव एक या दो बार हथेलियों से देना चाहिए। इसके बाद दबाव दोनों हाथों के मध्य की 3 उंगुलियों के शीर्ष को मिलाते हुए देना चाहिए तथा इस प्रकार से दबाव देते समय श्वास को छोड़ना चाहिए। इस दबाव की क्रिया को कम से कम तीन बार दोहराना चहिए और फिर इन बिन्दुओं पर दबाव खड़े होकर या फिर लेटकर देना चाहिए।
6. साईनुसाइटिस- आंख, कान, नाक तथा मस्तिष्क के अग्र भाग के गड्डों में जब बलगम या मवाद इकट्ठी (जमा) हो जाती है, तब उस अवस्था (विकार) को साईनुसाइटिस कहते है। जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो इस कारण व्यक्ति का दम घुटने लगता है तथा उसे अपना सिर भारी-भारी लगने लगता है। रोगी व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने लगती है। इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति को नींद भी अच्छी नहीं आती है तथा उसे थकान भी अधिक होने लगती है। रोगी व्यक्ति को कई प्रकार की एलर्जी भी हो जाती है। साईनुसाइटिस रोग के होने के अनेक कारण हो सकते हैं जैसे-अधिक कफ निकलना, अधिक सर्दी लगना, नाक बंद हो जाना या फिर छाती में कफ जम जाना आदि।
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार साइनस के 4 भाग होते हैं जो इस प्रकार हैं-
1. मैक्सीलरी साइनस- यह भाग ऊपरी जबड़े की हड्डी के अन्दर वाले भाग में स्थित होता है।
2. फ्रन्टल साइनस- यह भाग भौंहे के ऊपर वाली ललाटीय (माथे पर) भाग में स्थित होता है।
3. इथमायड साइनस- यह भाग नाक तथा आंख के बीच का भाग होता है।
4. स्फैलायडल साइनस- यह भाग कान तथा आंख के बीच का तथा आंख की भौंहे की सिरे से लगा हुआ होता है।
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार साइनस भाग पर दबाव देकर उपचार-
  • रोगी व्यक्ति के खोपड़ी में गर्दन की ओर एक गड्ढा होता है जिसे मेडूला आब्लांगेटा कहते है। इस बिन्दु पर 5 सेकेण्ड तक दबाव देना चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति के आंखों के अन्दर की छोर पर तथा नाक से सटे हुए नासिका के बिन्दुओं पर 3 सेकेण्ड तक दबाव देना चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति की नाक के मध्य भाग में जो नाक की हड्डी के छोर पर स्थत है, उस जगह की बिन्दु पर तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति की नाक के पास वाले भाग के दोनों तरफ नासिका बिन्दु स्थित होते हैं, उस भाग के बिन्दुओं पर दबाव कम से कम 3 सेकेण्ड के लिए देना चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति के गाल की हड्डी के निचले वाले भाग जो दोनों ओर जबड़े पर होते हैं उस भाग की बिन्दुओं पर कम से कम तीन सेकेण्ड तक दबाव देना चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति के कान और आंख के बीच वाले भाग पर जो बिन्दु होता है उस पर प्रेशर देने के लिए अंगूठे के सिरे का उपयोग करना चाहिए तथा इस भाग पर कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति की दोनों आंखों के अन्दर की ओर जो हड्डी हैं उसके बिन्दुओं पर दबाव कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए देना चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति के माथे की बिन्दुओं पर कम से कम तीन सेकेण्ड तक दबाव देना चाहिए।
7. उच्च रक्तचाप- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार उच्च रक्तचाप120 डिग्री सेल्शियस तथा डाइस्टोलिक रक्तचाप 80 डिग्री सेल्शियस होता है। उच्च रक्तचाप को हाइपरटेन्शन (हाइ ब्लडप्रेशर) या फिर उच्च तनाव भी कहा जाता है। हाई ब्लडप्रेशर एक बहुत ही खतरनाक बीमारी है। इस रोग के कारण और भी कई दूसरे रोग व्यक्ति के शरीर में हो जाते हैं।
उच्च रक्तचाप से अनेक रोग हो सकते हैं जो इस प्रकार हैं-
  • हृदय के अनेक रोग
  • धमनियों की कठोरता
  • ब्रेन हेमरेज
  • आंखों से सम्बन्धित अनेक रोग
  • कम आयु में मृत्यु हो जाना
          इसलिए उच्च रक्तचाप का रोग होने पर तुरन्त इसका इलाज कराना चाहिए नहीं तो व्यक्ति को ब्लडप्रेशर से सम्बन्धित अनेक रोग हो सकते हैं। आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार ब्लडप्रेशर के रोगों को ठीक करने के लिए अनेक बिन्दु बताए गए हैं, जिन पर कुछ सेकेण्डों तक प्रतिदिन दबाव देने से हाई ब्लडप्रेशर का रोग ठीक हो सकता है और रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
उच्च रक्तचाप को रोकने के लिए अनेक बिन्दु है जिस पर दबाव देकर रोगी का रोग ठीक हो जाता है -
  • ग्रीवा धमनी से सम्बन्धित बिन्दु जो गले पर स्थित होता है। इस बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए उंगलियों के ऊपरी भाग का इस्तेमाल करना चाहिए तथा इन बिन्दुओं पर दबाव कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए देना चाहिए और इसके बाद इस क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए।
  • धड़कनों से सम्बन्धित प्रतिबिम्ब बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए उंगलियों के ऊपरी भाग का इस्तेमाल करना चाहिए। इस बिन्दु पर दबाव कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए देना चाहिए और इस क्रिया को तीन बार दोहराना भी चाहिए। जब इन बिन्दुओं पर दबाव दे रहे हो तब गहरी श्वास लेनी चाहिए और फिर इसके बाद धीरे से अपने श्वास को छोड़ना चाहिए। इस प्रकार की क्रिया को गर्दन की दूसरी तरफ भी करना चाहिए। इन बिन्दुओं पर दबाव देते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि दबाव गर्दन की दोनों तरफ एक साथ न दें क्योंकि इससे गर्दन दबाकर, रोगी व्यक्ति का दम घुट सकता है।
  • हाई ब्लडप्रेशर के रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति के गर्दन के पीछे की ओर अपने दोनों हाथ की उंगलियों को सोलरफ्लेक्स के भाग पर रखे अर्थात पेट के बीच में ऊपरी भाग पर पसलियों के नीचे। इस भाग के बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को सांस छोड़ने के लिए कहना चाहिए। इसके बाद इन बिन्दुओं पर दबाव देना चाहिए। यह दबाव 3 सेकेण्ड के लिए देना चाहिए। इस प्रकार से उपचार कम से कम तीन बार करना चाहिए।
  • मेडूला आब्लांगेटा भाग के बिन्दुओं पर अंगूठे से दबाव देना चाहिए।
पैर के परावर्ती प्रभाग- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार पैर के परावर्ती प्रभाग निम्न होते है जो इस प्रकार हैं-
  • डायाफ्राम
  • किडनी
  • एड्रेनल
  • थायरायड।
8. निम्न रक्तचाप- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार यदि किसी व्यक्ति का रक्तचाप निम्न हो जाता है तो उसे अधिक कमजोरी होने लगती है जिसके कारण वह अधिक सोच-विचार करने लगता है। इस रोग के लक्षण यदि तेज न भी हो तो भी इसका इलाज जल्दी ही कराना चाहिए नहीं तो इस रोग के कारण व्यक्ति को और भी कई प्रकार के रोग हो सकते हैं जो इस प्रकार है-
  • सिर में दर्द होना।
  • चक्कर आना
  • शरीर अधिक थका-थका सा लगना।
  • आंखों के आगे अंधेरा सा छाना।
  • छाती में जकड़न महसूस होना।
  • हृदय की धड़कन बढ़ जाना
  • चलने-फिरने की शक्ति कम हो जाना।
          शरीर के निम्नलिखित भागों के बिन्दुओं पर दबाव देकर रोगी का इलाज आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से किया जा सकता है जो इस प्रकार है-
  • केरोटिड साइनस के भाग के बिन्दुओं पर दबाव देकर निम्न रक्तचाप के रोग को ठीक किया जा सकता है। इस भाग के बिन्दु अधिकतर ग्रीवा (गर्दन) धमनी से सम्बन्धित बिन्दु के पास होते हैं। इन बिन्दुओं पर दबाव कम से कम 3 सेकेण्ड के लिए देना चाहिए।
  • निम्न रक्तचाप को ठीक करने के लिए सिर के बीच की मांग की रेखा के मध्य भाग में जहां कहीं दर्द महसूस होता है उस बिन्दु पर हाथ की तीन उंगलियों से दबाव देना चाहिए। इस बिन्दु पर तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए फिर इस क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए।
  • उच्च रक्तचाप की तरह मेडूला पर दबाव देना चाहिए और इस बिन्दु पर कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। इस प्रकार से रोगी का इलाज लगातार कुछ दिनों तक करने से रोगी का ब्लडप्रेशर सामान्य हो जाता है।

अंगमर्दक चिकित्सा के पांच नियम

परिचय-

          आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के पांच नियमों का पालन करके अपने उम्र को लम्बा तथा जीवन को स्वास्थ्य पूर्ण बनाया जा सकता है।
1. समुचित नींद लेना-
        आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अर्न्तगत प्रतिदिन व्यक्ति को 8 घंटे की नींद लेना बहुत जरूरी है। शरीर की थकान को मिटाने के लिए भी नींद लेना बहुत जरूरी है। जितना नींद लेने से शरीर की थकान को मिटाया जा सकता है, उतना किसी और चिकित्सा प्रणाली और न किसी दवा से मिटाया जा सकता है। नींद की अवस्था में शरीर के सभी अंग तथा मस्तिष्क के स्नायु आराम की स्थिति में होते हैं और स्नायु भी शिथिल की अवस्था मे होते हैं जिसके कारण शरीर की थकान मिट जाती है तथा मन तरोताजा हो जाता है।
        वैसे तो नींद लेने के बहुत तरीके है लेकिन नींद लेने का आदर्श तरीका यह है कि लेटते ही गहरी नींद आ जाए और तब तक नींद की अवस्था में रहें जब तक कि अपने आप नींद न खुले।
सभी व्यक्तियों को प्रतिदिन नींद लेते समय सपने आते हैं तथा सपनों के लिए हल्की नींद जरूरी होती है जो कि गहरी नींद की तुलना में लाभकारी नहीं होती है। ठीक इसी प्रकार नशे के कारण आने वाली नींद आदर्श नींद नहीं होती हैं क्योंकि इस प्रकार की नींद गहरी नींद नहीं होती है।
        रात के समय में जल्दी सो जाना चाहिए तथा सूरज निकलने से पहले जाग जाना चाहिए और सुबह के समय में उठकर शुद्ध हवा का लाभ उठाना चाहिए। इस जीवन में यह जरूरी है कि शुद्ध हवा में सांस ली जाए तथा गहरी नींद में सोया जाए तथा आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से नियमित रूप से उपचार किया जाए तो जिन्दगी लम्बी और स्वस्थ हो सकती है।
2. उचित मात्रा मे खुराक-
        अपने इस जीवन में खाने की खुराक समुचित होना बहुत जरूरी होता है। भोजन कितना भी पौष्टिक क्यों न हो फिर भी उसे भूख से अधिक नहीं खाना चाहिए। जो भोजन मनुष्य खाने में इस्तेमाल कर रहा है उसमें उचित मात्रा में प्रोटीन, वसा तथा कार्बोहाइड्रेट होने चाहिए ताकि सक्रिय जीवन जिया जा सके तथा इसके अलावा भोजन में खनिज, जल तथा विभिन्न प्रकार के विटामिन भी होने चाहिए। जिससे भोजन पाचने की क्रिया में विघटन हो सके और उसे ऊर्जा में बदला जा सके।
        भोजन कितना ही संतुलित क्यों न हो उसके साथ यह भी आवश्यक है कि आप जिस पदार्थ को ग्रहण कर रहे हैं शरीर उसे अच्छी तरह से पचा सके। इसलिए यह जरूरी है कि भोजन नियमित समय पर पर्याप्त मात्रा में किया जा सके तथा भोजन जब भी खा रहे हो उसे अच्छी तरह से चबाएं। जब आप नाश्ता कर रहे हो उस समय यह ध्यान देना जरूरी है कि नाश्ता हमेशा पौष्टिक होना चाहिए। भावनात्मक तनाव का प्रभाव पाचनसंस्थान पर पड़ता है। इसलिए यह जरूरी है कि व्यक्ति को चिंता, फिक्र तथा क्रोध नहीं करना चाहिए तथा शांत और सुखद वातावरण में भोजन खाना चाहिए। यदि पाचनतंत्र से सम्बन्धित कोई रोग हो जाए तो उस रोग का इलाज तुरन्त कराना चाहिए तथा इन रोगों का इलाज आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से किया जा सकता है। इस चिकित्सा से उपचार करने पर पाचन व पोषक तत्वों का भली प्रकार से शोषण होता है जिसके फलस्वरूप खाया-पिया भोजन शरीर में लगने लगता है और स्वास्थ्य में सुधार हो जाता है।
3. व्यायाम- अच्छे स्वास्थ्य के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना बहुत जरूरी है। शरीर को उचित व्यायाम न मिल पाने के कारण व्यक्ति की मांसपेशियों की शक्ति क्षीण हो जाती है। इस शक्ति को बनाये रखने के लिए व्यायाम करना बहुत ही आवश्यक होता है। आज के समय में इसलिए ही जोगिंग का प्रचलन बढ़ गया है। लेकिन इसके अलावा भी रोज प्रतिदिन पैदल चलने से तथा प्रतिदिन के कार्यो में शरीर को जितना सम्भव हो उतना हिलाने-डुलाने मात्र से अच्छे परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
        पैदल चलने से पैरों की रक्त वाहिनियों में समुचित प्रवाह होता है और निष्क्रियता के कारण उत्पन्न सुस्ती दूर हो जाती है। आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार हाथों तथा उंगलियों की कसरत पर बहुत अधिक ध्यान देना चाहिए। छोटे बच्चे जो शरीर के इन भागों का व्यायाम नहीं करते हैं तथा वे अधिकतर परावर्तित क्रियाओं को विकसित करने में असफल रहते हैं जिसके कारण वह गिरते रहते है और चोट ग्रस्त हो जाते है।
        हाथ तथा उंगलियों की कसरत करने से प्रेरक तन्त्रिकाएं विकसित हो जाती हैं। जो आत्म रक्षा के लिए हाथ और भुजाओं की परावर्तित क्रियाएं को तेज कर देती हैं। आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा आंखों तथा दान्तों को मजबूत बनाने के लिए उचित व्यायाम करना चाहिए। यह बहुत ही लाभदायक है क्योंकि इस प्रकार के व्यायाम से हाथ व उंगलियों का अभ्यास मस्तिष्क के क्रिया-कलापों से जुड़ा रहता है।
4. मल त्याग- वैसे देखा जाए तो दिन में एक बार मलत्याग करना बहुत जरूरी है। मलत्याग सम्बन्धी नियमों का प्रतिदिन पालन करना चाहिए। इन नियमों के सही तरीके से पालन करने पर पाचनतंत्र प्रणाली सही तरीके से कार्य करती है तथा पोषक तत्व सोख लिए जाते हैं।
5. हंसी-
        मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए हंसना बहुत जरूरी है। हंसता हुआ चेहरा सुखद सा लगता है तथा सुन्दर भी लगता है जो व्यक्ति हंसता रहता है उसका शरीर स्वस्थ रहता है। हंसी के द्वारा खून के रंग में भी सुधार हो जाता है। हंसी के विपरीत जो व्यक्ति क्रोध करता है तथा भय से डरा हुआ होता है उसका चेहरा काला सा पड़ जाता है और आंतरिक अंगों में विकृतिजन्य तनाव उत्पन्न करता है।
        हंसी के कारण डायाफ्राम की ऊपर-नीचे गति हृदय की क्रिया को तेज कर देती है। जिसके परिणामस्वरूप रक्तप्रणाली में सुधार होता है और शरीर के कई रोग अपने आप ठीक हो जाते हैं। हंसी के द्वारा आमाशय तथा आन्तो की क्रिया में तेजी आती है जिसके फलस्वरूप पाचनप्रणाली में सुधार होता है और शरीर स्वस्थ बना रहता है। हंसी के द्वारा अन्त:स्रावी प्रणाली के आंतरिक स्रावों को भी गति मिल जाती है जिसके कारण शरीर के अनेक रोग ठीक हो जाते हैं।
        इन चित्रों में हंसी के द्वारा चेहरा किस तरह का रहता है और क्रोध तथा चिंता के समय व्यक्ति का चेहरा कैसा रहता है यह समझाया गया है। हंसी के द्वारा चेहरे पर प्रसन्नता बनी रहती है तथा चेहरा खिला-खिला सा रहता है जबकि ठीक इसके विपरित चेहरा मुरझाया सा लगता है तथा ऐसा लगता है कि व्यक्ति को कोई रोग है।

दबाव देने के प्रकार

परिचय-

          आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से उपचार करने से पहले यह जानना जरूरी है कि रोगों का उपचार करने के लिए बिन्दुओं पर किस प्रकार का दबाव दें। सही तरीके से दबाव देकर ही रोगों का उपचार ठीक प्रकार से किया जा सकता है। जब तक रोगों को ठीक करने के लिए बिन्दुओं पर दबाव सही नहीं पड़ता है तब तक रोगी को सही लाभ भी नहीं मिलता है।
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा में दबाव देने के प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. अंगूठे से दबाव देना-
          हाथ का अंगूठा मोटा तथा छोटा होता है और उसमें समीपस्थ व दूरस्थ दो पर्व होते हैं। हाथ की बाकी उंगलियों में मध्य पर्व नहीं होता है जैसा कि इस चित्र में दिखाया गया है। स्थिरता के साथ सुविकसित उंगली पर्व तथा भली प्रकार से जुड़ी पेशी-समूह होती हैं। ये सभी पर्व मिलकर अंगूठे को आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा प्रणाली में रोगों के इलाज करने के अनुसार (अंगूठे को बिन्दु पर दबाव देने के अनुरूप) बनाती हैं। अंगूठे से पूरी शक्ति के साथ व्यापक क्षेत्र पर दबाव दिया जा सकता है। इतना ही नहीं अंगूठे के ऊपर की ओर उठा हुआ पर्व का क्षेत्र (अंगूठे के पर्व क्षेत्र) जितना अधिक होगा, उतना ही त्वचा के ज्ञान अंग भी फैले होंगे जिसके परिणाम स्वरूप ज्ञान संग्राहकों की शक्ति बढ़ेगी।
          अंगूठे से दबाव देने के लिए करभास्थि (अंगूठे के हड्डी का सबसे निचला सिरा) व समीपस्थ पर्व (अंगूठे से नीचे तथा कलाई से थोड़ा ऊपर की ओर का क्षेत्र) के मध्य का जोड़ जरा सा मुड़ा होना चाहिए तथा जब यह बिन्दु तनावग्रस्त लगे तो अंगूठे के पर्व से दबाव देना चाहिए। दबाव देते समय हाथ के अंगूठे को छोड़कर शेष चारों उंगलियों की स्थिति ऐसी होनी चाहिए कि उन से अंगूठे के दबाव पर नियंत्रण बना रहे।
          कुछ व्यक्तियों के अंगूठे दूरस्थ पर्व पर प्राकृतिक रूप से मुड़ सकते हैं। लेकिन कुछ व्यक्तियों के ये पर्व नहीं मुड़ते हैं।
          आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार अंगूठे के उभरे पर्व से दबाव दिया जा सकता है। मगर कोमल अंगूठे के मामले में सपीपस्थ व दूरस्थ पूर्व (अंगूठे के नाखूनों से थोड़े नीचे का भाग) के बीच के जोड़ से दबाव नहीं दिया जाना चाहिए और ठीक इसी प्रकार अंगूठे के कठोर होने पर उसकी नोक से दबाव नहीं देना चाहिए। किसी भी चिकित्सक को जैसे-जैसे आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार उपचार करने का अनुभव होता हैं। वैसे-वैसे उसे दबाव देने का अनुभव भी होता जाता है और कहां पर दबाव हल्का देना है, और कहां पर कम देना है यह उस चिकित्सक को ज्ञान हो जाता है।
2. एक अंगूठे के द्वारा दबाव देना- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा  में रोगों का उपचार करने के लिए हाथ के एक अंगूठे चाहें वह दायां हो या बायां उस से दबाव देना चाहिए। दबाव देते समय अंगूठे के अलावा बाकी चारों उंगलियों को सहारे के लिए रोगी के शरीर पर रखना चाहिए।

3. दो अंगूठों से दबाव देना- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा में रोगों का उपचार करने के लिए दो अंगूठों का उपयोग किया जा सकता है। दो अंगूठों से दबाव देने के लिए दोनों हाथ के अंगूठों को इस प्रकार पास में लाया जाता है कि अंगूठे के बाहरी किनारे एक-दूसरे को छुएं तथा दोनों अंगूठे 30 डिग्री का कोण बनाते हुए, एक दूसरे से चिपके रहें और फिर इसके बाद बिन्दुओं पर एक साथ दोनों अंगूठों से दबाव देना चाहिए।
4. अंगूठे पर अंगूठा रख कर दबाव देना- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा  में रोगों का उपचार करने के लिए दाहिने हाथ के अंगूठे को बाएं हाथ के अंगूठे के पर्व (नाखून) के ऊपर रखते हैं। दोनों अंगूठे को एक दूसरे के ऊपर इस तरह से रखते हैं कि 30 डिग्री का कोण बन सके। इसके बाद दाहिने हाथ के अंगूठे को उपयुक्त बिन्दु पर रख कर दबाव देना चाहिए। लेकिन इस तरह दबाव देते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि ऊपर वाले अंगूठे से ज्यादा दबाव न पड़ सके तथा इसके साथ यह भी ध्यान रखना चाहिए कि निचले अंगूठे पर ज्यादा भार न पड़े। खब्बू (उल्टे हाथ से काम करने वाले) व्यक्तियों के लिए यह क्रिया बिल्कुल उल्टी होती है।
5. तर्जनी उंगली तथा अंगूठे से दबाव देना- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से रोगों का उपचार करने के लिए हाथ की तर्जनी उंगली तथा अंगूठे के पर्वों (नाखून) को दूर-दूर रखना चाहिए। इस तरीके का उपयोग उंगलियों तथा अंगूठों पर दबाव देने के लिए किया जाना चाहिए।


6. तर्जनी तथा बीच की उंगली से दबाव देना - आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से रोगों का उपचार करने के लिए तर्जनी उंगली को बीच की उंगली पर रखकर फिर उंगलियों की ऐसी स्थिति में तर्जनी उंगली के पर्व के द्वारा रुक-रुककर दबाव देना चाहिए। नाक से सम्बन्धित रोगों का उपचार करने के लिए इस तरीके का इस्तेमाल (उपयोग) किया जाता है।
7. बाएं हाथ की बीच की उंगली तथा दाएं हाथ की बीच उंगली से दबाव देना- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से रोगों का उपचार करने के लिए बाएं हाथ की बीच की उंगली तथा दाएं हाथ की बीच उंगली को बिन्दुओं पर एक दूसरे उंगली के पर्व (नाखून के ऊपर का भाग) पर रखना चाहिए। फिर रोग को ठीक करने के लिए निर्धारित बिन्दु पर दबाव देना चाहिए। खब्बू व्यक्तियों के लिए यह क्रिया विपरीत (उल्टी) होती है।
8. तर्जनी तथा बीच की उंगली के द्वारा दबाव- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से रोगों का उपचार करने के लिए तर्जनी उंगली तथा बीच की उंगली को एक कोण बनाते हुए खोलते हैं। इन दोनों उंगलियों से बिन्दुओं पर दबाव देना चाहिए।

9. तीन उंगलियों से दबाव- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से रोगों का उपचार करने के लिए तर्जनी, बीच की उंगलियों तथा अनामिका उंगलियों को एक साथ सटा कर दबाव देना चाहिए। प्रकार दबाव देने से हृदय की धड़कन से सम्बन्धित रोगों को ठीक किया जा सकता हैं।
10. खुले अंगूठे तथा चारों उंगलियों से दबाव देना- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से रोगों का उपचार करने के लिए एक ही हाथ की चारों उंगलियों को सटा कर रखना चाहिए तथा इन उंगलियों से अंगूठे को जरा सा हटा कर रखना चाहिए और फिर बिन्दुओं पर दबाव देना चाहिए जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। इस प्रकार का दबाव पश्च कपाल (सिर के पीछे तथा गर्दन के पृष्ठ (गर्दन के पीछे का भाग) भागों में दिया जाना चाहिए।
11. खुली हुई चारों उंगलियों से दबाव देना- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से रोगों का उपचार करने के लिए एक ही दिशा में एक हाथ की चारों उंगलियों और अंगूठे को बिन्दुओं पर एक साथ रखना चाहिए और उंगलियों से इस प्रकार का दबाव देना चाहिए कि वक्षस्थल (स्तन) तथा अन्त:पार्श्विक क्षेत्रों (पीठ का भाग) का उपचार किया जा सके।

12. हथेली से दबाव- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से रोगों का उपचार करने के लिए हाथ की हथेली को बिन्दुओं पर रखकर दबाव देना चाहिए। इस प्रकार से दबाव देने कें लिए हाथ की चारों उंगलियों तथा अंगूठे को आपस में सटा कर रखना चाहिए।

13. हाथ पर रखे हाथ से दबाव देना- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से रोगों का उपचार करने के लिए दोनों हाथों की उंगलियों को सटाकर दाहिने हाथ के ऊपर बाएं हाथ की हथेली को रखकर बिन्दुओं पर दबाव देना चाहिए। इस प्रकार से दबाव देने में बाएं हाथ की हथेली को दाएं हाथ के हथेली के ऊपर इस प्रकार रखना चाहिए कि हाथ की हथेली को बिन्दुओं पर आसानी से रखा जा सके।

14. दोनों हथेलियों से दबाव देना- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से रोगों का उपचार करने के लिए दोनों हाथों की हथेलियों को एक-दूसरे के पास इस प्रकार से रखना चाहिए कि दोनों हाथों के अंगूठें के बाहरी सिरे एक-दूसरे को स्पर्श (छुएं) और फिर इसके बाद दोनों हाथों से एक साथ बिन्दुओं पर दबाव देना चाहिए।
15. दोनों हाथों को जोड़ कर दबाव देना- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से रोगों का उपचार करने के लिए दोनों हाथों की हथेलियों को आपस में फंसा कर कलाई क्षेत्रों से एक साथ बिन्दुओं पर दबाव दबाव देना चाहिए। इस प्रकार के दबाव का उपयोग गुर्दे के क्षेत्र में किया जाता है।

16. करतल से दबाव देना- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से रोगों का उपचार करने के लिए हाथ के हथेली के करतल तल (अंगूठे के बायें भाग) से पेट पर दबाव दिया जाना चाहिए।

17. कनिष्ठा मूल द्वारा दबाव देना- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से रोगों का उपचार करने के लिए हाथ की हथेली के कनिष्ठा मूल (हाथ की सबसे छोटी उंगली का दायां भाग) के द्वारा दबाव देना चाहिए।


समय सीमा के अनुसार दबाव के प्रकार-
         आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा उपचार करने से पहले यह जानना बहुत जरूरी है कि बिन्दु पर दबाव कितने समय के लिए देना चाहिए तथा दबाव किस प्रकार देना चाहिए।
समय सीमा के अनुसार दबाव के प्रकार निम्नलिखित है-
1. आम दबाव- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से उपचार करने के लिए ज्यादातर उपयोग में आने वाले तरीको के द्वारा धीरे-धीरे दबाव देना चाहिए तथा दबाव देते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि दबाव धीरे-धीरे कब घटाना है। इस प्रकार दबाव देने के लिए 3 से 5 सेकण्ड का समय लेना चाहिए। इस प्रकार दबाव देने की क्रिया को आम दबाव कहते है।

2. हथेली को एक जगह रख कर दबाव देना- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से उपचार करने के लिए हथेलियों को एक जगह रख कर दबाव दिया सकता है तथा इस प्रकार के दबाव देने में 5 से 10 सेकेण्ड तक का समय लेना चाहिए।
3. रुक-रुक कर दबाव देना- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से उपचार करने के लिए एक बिन्दु पर पहले हल्का-हल्का दबाव देना चाहिए फिर उसके बाद अंगूठे को त्वचा पर से हटाए बिना दबाव देना चाहिए तथा इसके बाद कुछ देर रुक-रुक कर दबाव देना चाहिए। फिर कुछ देर रुककर इन बिन्दुओं पर वैसे ही दबाव देना चाहिए जैसे कि पहले दिया थे। इसके बाद जब तीसरी बार दबाव देते हैं तो दबाव कुछ तेज कर देना चाहिए। एक बार में दबाव देने के लिए कम से कम  5 से 7 सेकेण्ड का समय लेना चाहिए।
4. सक्शन दबाव- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से उपचार करने के लिए रोगी की त्वचा पर तीन उंगलियों या हथेली को इस प्रकार रखना चाहिए कि त्वचा पर आसानी से दबाव दिया जा सके।
5. तरल दबाव- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से उपचार करने के लिए रोग के अनुसार एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु पर दबाव एक साथ सहज व सरलता के साथ देना चाहिए। इस प्रकार दबाव देने के लिए हाथों के अंगूठों से 1 से 2 सेकेण्ड तक प्रत्येक बिन्दु पर दबाव देना चाहिए। ऐसे ही बहुत सारे बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए रोगी के बगल में ऊपर तथा नीचे की ओर दबाव देना चाहिए।
6. कंपायमान (हाथ को कंपकपाते हुए दबाव देना) दबाव देना-आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से उपचार करने के लिए किसी एक बिन्दु पर 5 से 10 सेकेण्ड तक दबाव देने के लिए अंगूठे तथा तीन उंगलियों और हथेली को बिन्दु पर रख कर दबाव देना चाहिए। दबाव देते समय हाथ को कंपकंपाना चाहिए। इस तरीके से दबाव देने के और भी रूप हो सकते हैं जो इस प्रकार हो सकते हैं- दो हथेलियों से दबाव, एक हथेली से दबाव या फिर हथेली के ऊपर दूसरी हथेली को रख कर दबाव।
7. संकेंद्रित दबाव- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से उपचार करने के लिए हाथ के एक अंगूठे पर, दूसरे हाथ के अंगूठे को रखकर किसी एक बिन्दु पर 5 से 7 सेकेण्ड तक धीरे-धीरे दबाव को तेज करते हुए दबाव देना चाहिए तथा जब दबाव एक दम सामान्य रूप (कम) में हो जाता है तो अंगूठे को रोगी की त्वचा पर से हटाये बिना दबाव को धीरे-धीरे कम करते जाना चाहिए।
 8. हथेली द्वारा तेज दबाव- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से उपचार करने के लिए हाथ की सभी उंगलियों को एक साथ सटा कर हथेली को रोगी की त्वचा पर नीचे की ओर लाइए। इस प्रकार का दबाव हथेली पर दूसरी हथेली को रख कर भी दबाव दिया जा सकता है।
दबाव देने की तेज स्थितियां-
धुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा दबाव देते समय दबाव की तीव्रता (तेज) तथा कम हो सकती हैं जो इस प्रकार हैं-
1. हल्का दबाव- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा दबाव देते समय उंगलियों की स्पर्श की अवस्था से हल्का सा दबाव देते हुए आगे की बढ़ते जाते हैं तथा दुबारा स्पर्श की स्थिति में वापस लौटते जाते हैं। इस प्रकार का दबाव एक बिन्दु पर बार-बार या कई बिन्दुओं पर एक साथ देते हैं। इस प्रकार के दबाव में दबाव की तीव्रता सौ ग्राम से लेकर एक किलोग्राम तक होना चाहिए।
2. स्पर्श- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा दबाव देने के लिए इस पद्धति का उपयोग हृदय की धड़कन तथा कई प्रकार के रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है और रोगी की त्वचा पर हल्का सा दबाव देने के लिए होता है। इस प्रकार के दबाव में दबाव की तीव्रता लगभग सौ ग्राम होनी चाहिए।
3. कोमल दबाव- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा दबाव देने के लिए कोमल दबाव हल्के दबाव से ज्यादा होता है। लेकिन फिर भी यह दबाव रोगी के सहन शक्ति के अनुकूल होना चाहिए। कोमल दबाव देते समय श्वसन क्रिया के अनुरूप दबाव को धीरे-धीरे बढ़ाते रहना चाहिए तथा जब दबाव अधिकतम सीमा पर पहुंच जाए तो दबाव को धीरे-धीरे घटाना चाहिए। इस प्रकार के दबाव में दबाव की तीव्रता 1 से 5 किलो तक होती हैं।
4. मध्यम दबाव- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा दबाव देने के लिए दबाव देते समय दबाव को धीरे-धीरे बढ़ाते हैं। इस दबाव की शुरूआत में थोड़ा बहुत कष्ट होता है। लेकिन दबाव धीरे-धीरे आनन्ददायक हो जाता है। इस प्रकार के दबाव की तीव्रता 5 किलोंग्राम से 15 किलोग्राम होती है।
5. तेज दबाव- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा इस प्रकार का दबाव देने के लिए रोगी के शरीर की बिन्दुओं पर 15 किलोग्राम से 30 किलोग्राम तक की भार की तीव्रता वाला दबाव देना चाहिए। इस प्रकार के दबाव में रोगी को थोड़ा बहुत कष्ट होता है।

उपचार की स्थितियां

1. मस्तिष्क- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अन्तर्गत मस्तिष्क से सम्बन्धित जो रोग ठीक हो सकते हैं वे इस प्रकार हैं-

पागलपन, सीमित गंजापन, सिर का भारी होना, सिर में दर्द, माइग्रेन, पश्च कपालिया, स्नायुशूल, केशों तथा कपालावरण का कुपोषण।
2. चेहरा- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अन्तर्गत मस्तिष्क से सम्बन्धित जो रोग ठीक हो सकते हैं वे इस प्रकार हैं-
त्रिधारिया स्नायुशूल, दांत का दर्द, दांत का खोखलापन, चेहरे पर लकवा रोग का प्रभाव, त्वचा का खुरदरापन, पेशी पर लकवे का प्रभाव, अस्थाई निकट दृष्टि दोष, दूर दृष्टि दोष, पलकों पर लकवे का प्रभाव, टेढ़ा दिखाई देना, दिखाई न देना, नाक बंद हो जाना तथा सायनस रोग।
3. पाश्र्व ग्रीवा (गर्दन) के क्षेत्र- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अन्तगर्त पाश्र्व ग्रीवा (गर्दन के पीछे का भाग) के क्षेत्र से सम्बन्धित रोग जो ठीक हो सकते हैं वे इस प्रकार हैं-
घुमरी आना, कान में विभिन्न प्रकार की ध्वनि सुनाई देना, आवाज कम सुनाई देना, धमनी कठिन्य तथा माइग्रेन
4. बाहरी ग्रीवा (गर्दन) क्षेत्र- अंगमर्दक चिकित्सा के अन्तर्गत बाहरी ग्रीवा क्षेत्र (गर्दन का बाहरी भाग) से सम्बन्धित जो रोग ठीक हो सकते हैं वे इस प्रकार हैं-
दांत के रोग, दांत में दर्द, खून की कमी, चक्कर आना, वंशानुगत पेशीजनक, गर्दन में अकड़न, धमनी काठिन्य, रजोनिवृतिकालीन (मासिकधर्म के बंद होने का समय) समस्याएं, हिचकी, स्वसंचालित असंतुलन, रज्जु  में जलन, नींद न आना तथा हृदय के रोग
5. पश्च कपाल- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अन्तगर्त पश्च कपाल (सिर के पीछे का भाग) से सम्बन्धित जो रोग ठीक हो सकते हैं वे इस प्रकार हैं-
सिर में दर्द, पागलपन, नींद न आना, स्वसंचालित असंतुलन, खड़े रहने पर चक्कर आना, रजोनिवृति मासिकधर्म के बंद होने का समय) की समस्या, सिर में भारीपन महसूस होना तथा नाक से खून निकलना
6. पश्च ग्रीवा क्षेत्र- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अन्तगर्त पश्च ग्रीवा (गर्दन) क्षेत्र से सम्बन्धित जो रोग ठीक हो सकते हैं वे इस प्रकार हैं-
सिर में दर्द, माइग्रेन, पश्च कपालिय स्नायुशूल, धमनी का सही से काम न करना तथा अनिद्रा रोग
7. असफलक के ऊपर का क्षेत्र- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अर्न्तगत असफलक (हृदय के आस-पास का भाग) के ऊपर का क्षेत्र से सम्बन्धित जो रोग ठीक हो सकते हैं वे इस प्रकार हैं-
1. इस क्षेत्र के बाईं तरफ हृदय के रोग, आमाशय की गड़बड़ी, क्लोम ग्रंथि से सम्बन्धित रोग।
2. इस क्षेत्र के दायीं तरफ आमाशय के विकार, यकृत की समस्याएं, पित्त-पथरी
3. अकड़न, भूख न लगना, हृदय में जलन तथा प्रचण्ड स्नायुशूल।
8. अन्तरसबंधीय क्षेत्र- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अर्न्तगत अन्तरसंबन्धीय क्षेत्र से सम्बन्धित जो रोग ठीक हो सकते हैं वे इस प्रकार हैं-
1. इस क्षेत्र के बायीं तरफ की आंतों तथा आमाशय की गड़बड़ियां, हृदय रोग तथा क्लोम ग्रंथि के रोग।
2. इस क्षेत्र के बायीं तरफ पित्त-पथरी का रोग तथा यकृत के रोग
3. श्वसन रोग, अन्त:पार्श्विक स्नायुशूल, भूख की कमी, वक्ष सम्बंधी कशेरूका में मेरू-रज्जु के एक भाग का टेढ़ापन हो जाना तथा ‘वास नली से सम्बन्धित अस्थमा का रोग।
9. अवस्कंधफलकीय क्षेत्र- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अन्तर्गत अवस्कंधफलकीय क्षेत्र से संबन्धित जो रोग ठीक हो सकते हैं इस प्रकार हैं-
1. इस क्षेत्र के बायीं ओर आंतों तथा आमाशय की गड़बड़ियां तथा क्लोम ग्रंथि के रोग।
2. इस क्षेत्र के बायीं ओर यकृत के रोग तथा पित्त-पथरी रोग।
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा द्वारा कुछ ऐसे रोग होते है जिनका इलाज नहीं किया जा सकता हैं वे इस प्रकार हैं-
1. शल्य क्रिया (ऑप्रेशन) के द्वारा उत्पन्न तेज बुखार, तेज शारीरिक कमजोरी तथा संक्रमणकारी त्वचा के रोग
2. आंतों की ऐंठन, आंतों में रुकावट, कैंसर, पेट के बाहरी भाग की सूजन, उपान्त्र प्रदाह (जलन), वृक्क और नाभि के निचले हिस्से की जलन, क्लोम ग्रंथि का जलन, श्वेत रक्तता, हृदय, फेफड़ों की सूजन, आमाशय का घाव, ड्यूडनल अल्सर।
3. छुआछूत के रोग।
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से उपचार करते समय कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए जो इस प्रकार हैं-
1. रोगों का इलाज करते समय आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सक को अपने काम पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
2. उपचार को ईमानदारी तथा सावधानी से करना चाहिए।
3. रोगों का इलाज करते समय चिकित्सा की समय अवधि को ध्यान में रखना चाहिए। रोग का इलाज करते समय रोग के लक्षणों को भी ध्यान में रखना चाहिए। रोग का इलाज स्थिति उम्र के अनुसार 30 मिनट से एक घंटे तक होनी चाहिए।
4. रोगी व्यक्ति को उपचार कराने से पहले मल-मूत्र त्यागकर आपने आपको शारीरिक व मानसिक तौर पर शांत रखना चाहिए। यदि ज्यादा आवश्यकता पड़े तो उपचार को बीच में रोका जा सकता है।
5. रोगों का उपचार खाना खाने के आधा घंटा बाद शुरू करना चाहिए। जब पेट खाली होता है, और न ही भरा होता है।
6. रोगों का उपचार करते समय हाथ को स्वच्छ रखना चाहिए तथा हाथ के नाखून को ठीक प्रकार से काट लेना चाहिए।
7. उपचार करने से पहले रोगी को अपने मन को शांत करना चाहिए तथा मानसिक रूप से मजबूत हो जाना चाहिए।
8. उपचार करने से पहले चिकित्सक को गहरी सांस लेकर अपने आप को संयमित करना चाहिए।
9. चिकित्सक को उपचार की मूल बातों का पालन करना चाहिए।
10. इलाज की मूल स्थितियों को ध्यान में रखना चाहिए। यदि उपचार के लिए मुद्राएं सावधानीपूर्वक नहीं रखी गई तो दबाव का स्थिर नहीं रह पाएगा और रोगी को इलाज का पूरा लाभ नहीं मिल पाएगा।
11. उपचार करने के लिए जो बिन्दुओं का चुनाव करते हैं उन्हे बहुत ही सावधानीपूर्वक ढूंढना चाहिए।
12. रोगों का इलाज शुरू करते समय दबाव उचित तीव्रता (तेजी) के साथ देना चाहिए तथा बहुत ज्यादा शक्ति के साथ दबाव नहीं देना चाहिए।
13. किसी रोगी व्यक्ति को जब गर्भावस्था, अन्तकशेरूकीय चक्र के हार्निया आदि कई प्रकार के रोग हो जाते हैं जिसके कारण रोगी व्यक्ति अपने शरीर को ठीक प्रकार से घुमा-फिरा न सक रहा हो तो चिकित्सक को उपचार करते समय बहुत अधिक सावधानी पूर्वक रोगी के स्थिति के अनुरूप अपनी स्थिति बनानी चाहिए तथा नियमित तीव्रता (सामान्य तेजी) से दबाव देना चाहिए।
14. रोगी को उपचार कराते समय धैर्य बनाकर रखना चाहिए क्योंकि रोग को ठीक होने में कुछ समय लग सकता है।
15. रोगों का उपचार करते समय रोगी को अपने खान-पान पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए।

कुर्सी पर बैठकर उपचार कराने का तरीका

परिचय-

       आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा रोगी व्यक्ति का कुर्सी पर आराम की स्थिति में बैठाकर उपचार किया जा सकता है। ऐसा करने से रोगी को आराम मिलता है तथा उसका रोग जल्दी ठीक हो जाता हैं।
रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर आराम से बैठाकर उसके निम्नलिखित भाग पर दबाव दिया जा सकता है-
1. रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाकर उसके बाहरी ग्रीवा क्षेत्र पर दबाव देना चाहिए।
2. रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाकर उसके पार्श्विक ग्रीवा (गर्दन) क्षेत्र पर दबाव देना चाहिए।
3. रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाकर उसके मेरू-मज्जा (सिर के पीछे गर्दन के पास का भाग) भाग पर दबाव देना चाहिए।
4. रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाकर उसके पृष्ठा ग्रीवा (गर्दन के पीछे का भाग) क्षेत्र पर दबाव देना चाहिए।
5. रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाकर उसके ऊपरी स्कंधफलक (कंधे के ऊपर का भाग) क्षेत्र पर दबाव
6. रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाकर उसके मध्य स्कंधफलक (कंधे के बीच का भाग) क्षेत्र पर दबाव देना चाहिए।
7. रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाकर उसके धड़ पर दबाव देना चाहिए।
8. रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाकर कंधों के जोड़ों पर ऊपर-नीचे दबाव देना चाहिए।
1. रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाकर उसके बाहरी ग्रीवा क्षेत्र पर दबाव-
           सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाना चाहिए तथा इसके बाद रोगी को सीधे तनकर बैठने के लिए कहना चाहिए। इसके बाद रोगी के दोनों हाथो की हथेलियों को घुटनों पर रखने के लिए कहना चाहिए। फिर चिकित्सक को रोगी व्यक्ति के दाईं तरफ खड़ा हो जाना चाहिए। फिर रोगी व्यक्ति के बाहरी ग्रीवा (गर्दन) क्षेत्र के चारों बिन्दुओं पर बारी-बारी से तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। इसके बाद रोगी को सहारा देने के लिए चिकित्सक को अपने दाएं हाथ की चारों उंगलियों को सहारे के लिए रोगी के पृष्ठा ग्रीवा क्षेत्र (पीठ के ऊपर का भाग) पर दबाव देना चाहिए। फिर इसके बाद रोगी के दाएं भाग पर भी इसी प्रकार से दबाव देकर इलाज करना चाहिए।
2. रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाकर उसके पार्श्विक ग्रीवा (गर्दन) क्षेत्र पर दबाव-
             सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाना चाहिए तथा इसके बाद रोगी को सीधे तनकर बैठने के लिए कहना चाहिए। इसके बाद रोगी के दोनों हाथो की हथेलियों को घुटनों पर रखने के लिए कहना चाहिए। फिर इसके बाद चिकित्सक को रोगी की बाईं दिशा में आ कर अपनी बाईं हथेली को सहारे के लिए रोगी के मस्तक पर रखना चाहिए तथा अपने दाहिने हाथ से थोड़ा सा दबाव देना  चाहिए। फिर चिकित्सक को अपनी चारों उंगलियों को अंगूठे से दूर हटाकर फिर अंगूठे को  बाएं भाग पर तथा उंगलियों को दाएं भाग पर मेस्टायड प्रोसेस (पीठ के पास के भाग) के ठीक नीचे रखना चाहिए। इस स्थान पर तीनों पार्श्विक बिन्दुओं में से पहला बिन्दु होता है तथा वह ऊपर से नीचे की ओर बारी-बारी से दाएं-बाए बिन्दुओं पर तीन-तीन सेकेण्ड का दबाव देना चाहिए। फिर इस दबाव को तीन बार दोहरना चाहिए। चिकित्सक को रोगी का उपचार करते समय यह ध्यान रखना चहिए कि दोनों भागों पर दबाव समान रूप से पड़ना चाहिए।
3. रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाकर उसके मेरू-मज्जा भाग पर दबाव-
            सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाना चाहिए तथा इसके बाद रोगी को सीधे तनकर बैठने के लिए कहना चाहिए। इसके बाद रोगी के दोनों हाथो की हथेलियों को घुटनों पर रखने के लिए कहना चाहिए। फिर चिकित्सक को रोगी व्यक्ति के पीछे की ओर खड़ा हो जाना चाहिए। इसके बाद चिकित्सक को अपनी बाईं हथेली को रोगी के माथे पर अपने दाहिने अंगूठे के उभरे भाग से मेरू-मज्जा भाग पर दबाव देना चाहिए। इसके बाद अपनी चारों उंगलियों को रोगी के दाएं पार्श्विक ग्रीवा (गर्दन) क्षेत्र पर लपेट कर रखना चाहिए। इसके बाद जब चिकित्सक रोगी के इस भाग पर दबाव देता है तो उस समय रोगी से अपनी गर्दन को जरा सी आगे की ओर झुकाने के लिए कहना चहिए और फिर थोड़ा पीछे की ओर। गर्दन पर इस रूप में दबाव अन्दर तक जाता हुआ महसूस होता है। फिर बिन्दु पर पांच सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। चिकित्सक पर धीरे-धीरे दबाव का क्रम बढ़ाते रहना चाहिए तथा यह उपचार रोगी पर तीन बार प्रतिदिन करना चाहिए।
4. रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाकर उसके पृष्ठा ग्रीवा क्षेत्र पर दबाव-
          सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाना चाहिए तथा इसके बाद रोगी को सीधे तनकर बैठने के लिए कहना चाहिए। इसके बाद रोगी के दोनों हाथों की हथेलियों को घुटनों पर रखने के लिए कहना चाहिए। फिर चिकित्सक को रोगी व्यक्ति के पीछे की ओर खड़ा हो जाना चाहिए। इसके बाद चिकित्सक को रोगी के मेरू-मज्जा भाग के दोनों ओर के बिन्दुओं को पहला बिन्दु मानते हुए उसके ग्रीवा (गर्दन) क्षेत्र पर के बिन्दुओं पर बारी-बारी से दबाव देना चाहिए। इसके बाद अंगूठे से बिन्दु के बाईं रेखा पर दबाव देना चाहिए। दबाव देते समय चिकित्सक को एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि दबाव का रुख रोगी के मध्य भाग के तरफ हो फिर इस उपचार को तीन बार दोहराना चाहिए।
5. रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाकर उसके ऊपरी स्कंधफलक क्षेत्र पर दबाव-
          सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाना चाहिए तथा इसके बाद रोगी को सीधे तनकर बैठने के लिए कहना चाहिए। इसके बाद रोगी की दोनों हाथों की हथेलियों को घुटनों पर रखने के लिए कहना चाहिए। फिर चिकित्सक को रोगी व्यक्ति के पीछे की ओर घूमकर खड़ा हो जाना चाहिए। फिर अपनी कोहनी को बगल में फैलाकर अपने दोनों अंगूठों को रोगी के ऊपरी स्कंधफलक (कंधे के ऊपर का भाग) के बिन्दुओं पर रखना चाहिए तथा इसके बाद शेष बची उंगलियों को सहारे के लिए रोगी की छाती पर अर्थात रोगी के स्तन के ऊपर की ओर रखना चाहिए। फिर इसके बाद चिकित्सक को अपने शरीर का सारा वजन रोगी के शरीर पर दबाव देने के लिए लगाना चाहिए। दबाव देते समय चिकित्सक को एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि दबाव का रुख रोगी व्यक्ति के धड़ की तरफ हो। इस प्रकार से दबाव कम से कम पांच सेकेण्ड के लिए देना चाहिए तथा इस उपचार को तीन बार दोहराना चाहिए।
6. रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाकर उसके मध्य स्कंधफलक क्षेत्र पर दबाव-
        सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाना चाहिए तथा इसके बाद रोगी को सीधे तनकर बैठने के लिए कहना चाहिए। इसके बाद रोगी के दोनों हाथो की हथेलियों को घुटनों पर रखने के लिए कहना चाहिए। फिर चिकित्सक को रोगी व्यक्ति के पीछे की और थोड़ा हटकर खड़ा हो जाना चाहिए। इसके बाद चिकित्सक अपने अंगूठों को रोगी व्यक्ति के दाएं-बाएं मध्य स्कंधफलक के बिन्दुओं पर रखना चाहिए और सहारे के लिए उंगलियों को ऊपरी स्कंधफलक के भाग पर रखना चाहिए। इसके बाद दबाव शरीर के बाईं तरफ से शुरू करते हुए मध्य स्कंधफलक की दोनों ओर की पांच बिन्दुओं वाली दोनों रेखाओं पर बारी-बारी से दबाव देना चाहिए और सभी बिन्दुओं पर दबाव कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए देना चाहिए। इस प्रकार के उपचार को तीन बार दोहराना चाहिए। लेकिन दबाव देते समय चिकित्सक को यह ध्यान रखना चाहिए कि उंगलियां नीचे कमर तक जाएं। फिर इसके बाद दबाव को रोगी व्यक्ति के लीवरके भाग पर भी देना चाहिए।
7. रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाकर उसके धड़ पर दबाव:
         सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाना चाहिए तथा इसके बाद रोगी को सीधे तनकर बैठने के लिए कहना चाहिए इसके बाद रोगी के दोनों हाथो के हथेलियों को ऊपर की ओर करने के लिए कहना चाहिए। फिर चिकित्सक को रोगी व्यक्ति पीछे की ओर खड़ा हो जाना चाहिए। इसके बाद धड़ के दाएं भाग से रोगी व्यक्ति की कमर पर दबाव देना चाहिए। फिर रोगी व्यक्ति के दोनों हाथ की कलाइयों को पकड़कर उसकी भुजाओं को सिर से ऊपर उठाना चाहिए। जिससे रोगी के धड़ में विस्तार हो जाता है तथा रीढ़ की हड्डी में खिंचाव हो जाता है। इस प्रकार का इलाज रोगी पर पहली बार व्यायाम के रूप में करना चाहिए। इस प्रकार से रोगी के शरीर पर दबाव देकर इलाज करते समय चिकित्सक को यह ध्यान देना चहिए कि रोगी के शरीर का पूरी तरह से विस्तार (फैलाव) हो जाए। इसके बाद रोगी के हाथों को आगे की ओर धकेल कर छोड़ देना चाहिए।
8. रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठा कर कंधों के जोड़ों पर ऊपर-नीचे झुकाव-
         सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाना चाहिए तथा इसके बाद रोगी को सीधे तनकर बैठने के लिए कहना चाहिए। इसके बाद रोगी के दोनों हाथों को नीचे की ओर लटकाकर रखने के लिए कहना चाहिए। फिर रोगी को अपने कंधे को शिथिल (ठहरी हुई अवस्था में) अवस्था में रखने के लिए कहना चाहिए। इसके बाद चिकित्सक को रोगी व्यक्ति के पीछे की ओर खड़ा हो जाना चाहिए। फिर चिकित्सक अपने दोनों पैरों को एकसाथ मिलाकर अपने हाथों को रोगी के कंधे पर डेल्टायड मांसपेशी के समीप (पास) रखना चाहिए। इसके बाद बारी-बारी से दोनों कंधों को ऊंचा उठाने के बाद उसके हाथों को छोड़ देना चाहिए। जब इस प्रकार से रोगी के कंधे को ऊपर की ओर उठा रहे हो तो उस समय रोगी को अपने कंधे को तानकर नहीं रखना चाहिए। बल्कि उन्हें स्वाभाविक रूप में सामान्य स्थिति में आने देना चाहिए। इस प्रकार से दबाव देते हुए उपचार को तीन बार दोहराना चाहिए। जब उपचार बन्द कर रहे हो तब तेजी के साथ रोगी के कंधें को नीचे की ओर थपथपाना चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से रोगी के कई प्रकार के रोग जल्दी ही ठीक हो जाते हैं।

हाथ तथा उंगलियों से उपचार

परिचय-

आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से उपचार करने के लिए सबसे पहले यह जानने की आवश्यकता है कि मनुष्य के हाथ तथा उंगलियां दबाव देने के लिए किस प्रकार कार्य करती हैं। मनुष्य हाथों की सहायता से साधारण से साधारण तथा जटिल से जटिल कार्यों को भी कर सकता है। बहुत पुराने समय से ही मनुष्य के शरीर के विभिन्न भागों को दबाने, मलने तथा थपथपाने का कार्य हाथों से करता आ रहा हैं।
        वैसे तो मनुष्य के हाथों की तरह ही वनमानुषों के हाथ भी होते हैं जिसमें पांच-पांच उंगलियां होती हैं। लेकिन वनमानुषों का अंगूठा इतना विकसित नहीं होता है कि वह मनुष्य की तरह कार्य कर सके। मनुष्य के हाथ के अंगूठे में आठ मांसपेशियां होती है। इसी कारण अंगूठा सभी उंगलियों से अलग होता हैं। लेकिन छोटे बच्चों में ये अविकसित होता है और व्यक्ति की उम्र बढ़ने के साथ-साथ विकसित होता रहता है।
हाथों तथा उंगलियों की बनावट-
        हाथ की हथेलियों पर झुकाव वाले आकार होते हैं जो ऊतकों से बना होता है हथेलियों पर क्यूटीस के छिद्र होते हैं जिससे पसीना निकलता हैं इन आकारों से हथेलियों को जहां तेज संवेदनशीलता का गुण मिलता है वहीं किसी वस्तु को पकड़ने की क्षमता भी मिलती है।
        अंगुष्ठ मूल, उंगली पर्व तथा अव अंगुष्ठकमूल के उभरे भाग बहुत अधिक संवेदनशील होते हैं। अंगूठे, तर्जनी तथा अनामिका उंगलियों के पर्व बहुत अधिक संवेदनशील होते हैं। आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा  से उपचार करते समय इन संवेदनशील उभारों के ताप के संवेदी तत्वों से चिकित्सा रोगी की त्वचा की गर्माहट या शीतलता का निर्णय कर सकता है। मेइजनर स्पर्श अनुभूति करता है जबकि कार्पसल ताप का अहसास कराता है। पेसीनियन कार्पसल दबाव, क्रौसे के कार्पसल शीतलता तथा स्वतंत्र नाड़ियों के घोर दर्द का अहसास कराता है। आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से उपचार करने के लिए ये मांस के कड़ेपन तथा शारीरिक ताप का अनुमान लगाने के लिए बहुत ही आवश्यक अंग होते हैं। इन सब कारणों को जानने के लिए जो व्यक्ति जितना अधिक अनुभवी होगा, वह उतना ही आसानी से केवल स्पर्श कर सूक्ष्म से सूक्ष्म शारीरिक परिवर्तनों को जान सकेगा।
नाखून-
नाखून की त्वचा पर सींग के जैसे पदार्थ होते हैं और यह पदार्थ प्लेट के आकार के समान होता हैं। नाखून का एक सिरा स्वतंत्र किनारे के समान होता हैं जबकि दूसरा सिरा उंगली की त्वचा में से उभरा रहता है। नाखून का निचला भाग अंकुरित सतह के जैसा होता है जिसे नाखून का तल कहते हैं। त्वचा का वह भाग जहां से नाखून शुरू होता है उसे नाखू आधारक कहते हैं और इस सिरे से नाखून का विकास होता है। एक दिन में नाखून का विकास लगभग 0.1 से लेकर 0.15 मि. मी. तक होता है। नाखून का जड़ श्वेत अर्द्धचन्द्राकार होता है जो अभी तक पूर्ण कठोर नहीं बना होता है।
नाखून का कई रोगों से सम्बन्ध-
1. नाखून का चम्मच जैसा आकार- नाखून के बीच का भाग चम्मच के समान दबा रहता है जिसके कारण खून में लौह तत्व की कमी, एक्जीमातथा ड्यूडनल के कीटाणु पनपते हैं।
2. हिप्पोक्रेटिक नाखून- जब यह स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो नाखून का अंतिम सिरा नाखून के नोक को ढक देता है। यह नाखून के नाक तथा नाखून के मोटेपन के कारण होता है। इस अवस्था का सम्बन्ध हृदय के रोगफेफड़ों के रोग तथा ‘श्वासनलियों से सम्बन्धित रोग से हो सकते हैं।
3. रीडी नाखून- लम्बी खांच वाला नाखून स्नायविक कुपोषण, अपर्याप्त विटामिन `ए´ या कृत्रिम उत्तेजकों से होता है।

घुटने के बल बैठकर इलाज

          आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा घुटने के बल बैठाकर रोगी व्यक्ति के शरीर के कई भागों का इलाज किया जा सकता है जो इस प्रकार है-

1. रोगी को घुटने के बल बैठाकर गर्दन के बाहरी भाग पर दबाव।
2. रोगी को घुटने के बल बैठाकर गर्दन के पिछले भाग पर दबाव।
3. रोगी को घुटने के बल बैठाकर पार्श्विक ग्रीवा क्षेत्र दबाव।
4. रोगी को घुटने के बल बैठाकर पश्च कपाल-अन्तस्था दबाव।
5. रोगी को घुटने के बल बैठाकर कनपटी क्षेत्र दबाव।
6. रोगी को घुटने के बल बैठाकर कंधों के मध्य के भाग दबाव।
7. रोगी को घुटने के बल बैठाकर ऊपरी स्कंधफलक क्षेत्र दबाव।
8. रोगी को घुटने के बल बैठाकर धड़ का प्रसार दबाव।
9. रोगी को घुटने के बल बैठाकर कंधे के जोड़ों को ऊपर तथा नीचे की ओर मोड़ना दबाव।
10. रोगी को घुटने के बल बैठाकर कंधे तथा मेरू-रज्जु पर नीचे की ओर थपथपाना दबाव।
1. रोगी को घुटने के बल बैठाकर गर्दन के बाहरी क्षेत्र पर दबाव- रोगी का उपचार करने के लिए सबसे पहले उसे दोनों घुटनों के बल झुकाकर बैठाना चाहिए। फिर रोगी के धड़ को सीधे तानकर रखने के लिए कहना चाहिए। इस प्रकार से बैठने से गर्दन तथा स्कंधफलक क्षेत्र शिथिल हो जाते हैं। फिर रोगी का इलाज करने के लिए चिकित्सक को भी घुटनों के बल रोगी व्यक्ति के जरा सा बाईं ओर तथा रोगी व्यक्ति की तरफ झुककर बैठना चाहिए। फिर चिकित्सक को अपने दाहिने अंगूठे को रोगी के बाहरी ग्रीवा (गर्दन) क्षेत्र के बिन्दु पर रखकर दबाव देना चाहिए तथा रोगी के शरीर के करोटियड सायनस तथा करोटिड धमनी का स्पन्दन पर भी यह दबाव देना चाहिए। फिर रोगी के शरीर पर नीचे की ओर धमनी के साथ-साथ हंसली के सम्मुख थायरॉयड ग्रंथि तक जो चार बिन्दुएं होती है उन पर लगभग तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। इस प्रकार से दबाव को दिन में तीन बार दोहराना चाहिए। जब इस प्रकार का दबाव रोगी के शरीर के बाईं तरफ पूरा हो जाए तो इसके बाद रोगी के दाएं भाग के तरफ भी ठीक इसी तरह से दबाव देना चाहिए।
2. रोगी को घुटने के बल बैठाकर पश्च ग्रीवा क्षेत्र दबाव- रोगी व्यक्ति के पश्चग्रीवा (गर्दन का पिछला भाग) क्षेत्र पर दबाव देने के लिए रोगी को घुटने के बल बैठाकर उसके बाद चिकित्सक को रोगी व्यक्ति के पीछे की और खड़े होकर थोड़ा सा झुकते हुए रोगी व्यक्ति के गर्दन के पिछले क्षेत्र के दाएं-बाएं भाग पर अंगूठे तथा उंगलियों से बारी-बारी दबाव देना चाहिए। इस क्षेत्र पर दबाव देने के लिए गर्दन के पीछे की ओर दाएं-बाएं तीन बिन्दु होते हैं। इन बिन्दुओं पर लगभग तीन सेकेण्ड तक दबाव देना चाहिए।
3. रोगी को घुटने के बल बैठाकर पार्श्विक ग्रीवा क्षेत्र पर दबाव- रोगी व्यक्ति के पार्श्विक ग्रीवा क्षेत्र पर दबाव देने के लिए रोगी को घुटनो के बल बैठाकर उसके बाद चिकित्सक को रोगी के पीछे की ओर पार्श्विक ग्रीवां क्षेत्र के तरफ खड़ा हो जाना चहिए। फिर अपने बाईं हथेली से कोमलता पूर्वक रोगी के ललाट को एक हाथ से सहारा देते हुए उसके पार्श्विक ग्रीवा क्षेत्र पर अपने दाहिने हाथ के फैले हुए अंगूठे व उंगलियों से दाएं-बाएं भाग पर दबाव देना चाहिए। दबाव एक बिन्दु से शुरू कर के गर्दन के संधिस्थल पर स्थित बिन्दु तीन तक धीरे-धीरे बढ़ाते हुए तीन सेकेण्ड तक दबाव देना चाहिए और दबाव को तीन बार दोहराना चाहिए। इस तरह से दबाव देते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि अंगूठे व उंगलियों का पड़ने वाला दबाव एक बराबर हो।
4. रोगी को घुटने के बल बैठाकर पश्च कपाल-अन्तस्था दबाव- रोगी व्यक्ति की गर्दन के पिछले हिस्से पर दबाव देने के लिए रोगी को घुटने के बल बैठा कर उसके बाद चिकित्सक को रोगी के पीछे की ओर खड़ा हो जाना चहिए। फिर चिकित्सक को अपनी बाईं हथेली से रोगी व्यक्ति की बाईं हथेली से थामे रखकर अपने दाएं अंगूठे से मेरू-मज्जा (सिर के पीछे गर्दन के पास का भाग) के मध्य भाग पश्च ग्रीवा कोटर को दबाते है।  रोगी व्यक्ति को सहारा देने के लिए चिकित्सक को अपने दाहिने हाथ की चारों उंगलियों को रोगी व्यक्ति के दाएं पार्श्विक ग्रीवा क्षेत्र पर दबाव देते हुए रखते हैं। इसके बाद अपने दाहिने हाथ के अंगूठे का रुख ऊपर की ओर रोगी के मध्य बिन्दु की ओर रहता है तथा धीरे-धीरे रोगी के इस भाग पर दबाव देते हैं। इस प्रकार का दबाव कम से कम पांच सेकेण्ड के लिए देना चाहिए तथा इस क्रिया को कम से कम तीन बार दोहरना चाहिए और रोगी के शरीर पर दबाव मेरू-मज्जा तक पहुंच रहा है। चिकित्सक पहले दबाव के समय रोगी को अपना सिर आगे की ओर 30 डिग्री के कोण तक झुकाने को कहता है फिर 2, 3, 4 व क्रिया के दौरान वह रोगी को अपने सिर को पीछे झुकाने के लिए कहना चाहिए तथा इसके बाद रोगी के सिर को 30 डिग्री के कोण पर मोड़ना चाहिए।
5. रोगी को घुटने के बल बैठाकर कनपटी क्षेत्र दबाव- रोगी व्यक्ति के कनपटी के क्षेत्र पर दबाव देने के लिए रोगी को घुटनों के बल बैठा कर उसके बाद चिकित्सक को रोगी के पीछे की ओर अपने पैरों को फैलाकर झुक कर खड़ा हो जाना चहिए फिर आपने अपने उंगलियों को आपस में सटाकर आगे की ओर रोगी व्यक्ति के कनपटी क्षेत्र के दाएं-बाएं रखते हैं। फिर इसके बाद अपनी कोहनियों को अगल-बगल फैला देते है ताकि उसकी कलाईयां समान कोण पर मुड़कर सीधा दबाव डाल सके। इस प्रकार दबाव रोगी के शरीर पर कम से कम 10 सेकेण्ड लिए देना चाहिए।
6. रोगी को घुटने के बल बैठाकर कंधों के मध्य के भाग दबाव- इस क्रिया में दबाव देने के रोगी को घुटने के बल बैठाने के लिए कहते हैं फिर चिकित्सक को रोगी के पीछे की ओर खड़ा होकर अपने दोनों हाथों के अंगूठे व उंगलियों ज्यादा से ज्यादा फैले रहते हैं। चिकित्सक अपनी उंगलियों को रोगी व्यक्ति के स्कंधफलक के ऊपरी क्षेत्र तथा नीचे की ओर मुख वाले अंगूठे को स्कंधफलक के दाएं-बाएं बिन्दुओं पर रखता है फिर अंगूठे से दबाव लगभग तीन सेकेण्ड के लिए देना चाहिए। इसके बाद बारी बारी से दाएं-बाएं अंगूठों के द्वारा स्कंधफलक के मध्य के पांच बिन्दुओं की दो कतारों पर दबाव देतें है इस प्रकार का दबाव कम से कम तीन बार देना चाहिए। रोगी को सहारा देने के लिए हाथ की चारों उंगलियों का उपयोग करना चाहिए। रोगी के शरीर पर दबाव अपनी भुजाओं के सहारे देना चाहिए न कि केवल अंगूठे से। जब रोगी के शरीर पर इस तरह से दबाव दे रहे हो तो रोगी के शरीर के दोनों ओर दबाव का सहारा संतुलित होना चाहिए।
7. रोगी को घुटने के बल बैठाकर ऊपरी स्कंधफलक क्षेत्र दबाव- अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार इस प्रकार से रोगी के शरीर पर दबाव देने के लिए रोगी को सबसे पहले घुटनो के बल बैठाते हैं। इसके बाद चिकित्सक को अपनी टांगों को जरा सा फैलाकर रोगी के पीछे की ओर सीधा खड़ा होना चाहिए फिर थोड़ा सा रोगी की तरफ झुकना चाहिए। इसके बाद अपने अंगूठे को दाएं-बाएं रोगी के स्कंधफलकों पर रखना चाहिए। चिकित्सक को अपने हाथों की उंगलियों को रोगी के आगे की ओर रखना चाहिए तथा अंगूठे से समान कोण बनाने चाहिए। इस प्रकार रोगी के वक्ष क्षेत्र (स्तन) पर सहारे के लिए रखते है। इसके बाद दोनों हाथ के अंगूठे से बारी-बारी दबाव डालते हैं इस प्रकार दबाव कम से कम पांच सेकेण्ड के लिए देना चाहिए तथा यह उपचार कम से कम तीन बार प्रत्येक दिन करना चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन दबाव देने से कई प्रकार के रोग जल्दी ही ठीक हो जाते हैं।
8. रोगी को घुटने के बल बैठाकर धड़ का प्रसार दबाव-
         रोगी व्यक्ति के धड़ का प्रसार करते हुए दबाव देने के लिए रोगी को घुटनो के बल बैठाकर उसके बाद चिकित्सक को रोगी के पीछे की ओर खड़ा हो जाना चहिए। फिर रोगी की कलाइयों को अपने हाथों में पकड़कर उसके सिर को ऊपर उठा देना चाहिए तथा अपने दाहिने पैर के निचले भाग को सहारे के रूप में रोगी के रीढ़ की हड्डी सटा कर रखना चाहिए। इसके बाद रोगी के पंजों को बाहर की तरफ मोड़े रखते है जिससे कि वह रीढ की हड्डी का स्पर्श न करने पाए।       
        इसके बाद रोगी की बाहों को पकड़कर ऊपर की ओर खींचते है जिसके फलस्वरूप रोगी का धड़ पीछे की तरफ मुड़ जाता है। यइ क्रिया कई बार दोहरानी चाहिए इस प्रकार से क्रिया करते समय पहली बार करने के बाद दूसरी बार जब यह क्रिया दोहराना चाहिए तब चिकित्सक को और पीछे की ओर हट कर यह क्रिया को दोहराना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि रोगी दूसरी बार में रोगी जितना भी पीछे की तरफ झुक सकता है, उसे झुकने दिया जाए तथा बाद जब तक कि उसका चेहरा ऊपर की तरफ न हो पाए तब तक झुकने दिया जाए। जब रोगी पूरी तरह से पीछे की तरफ झुक जाए तब चिकित्सक को रोगी का हाथ छोड़ कर उसे पहले की स्थिति में लाना चाहिए।
9. रोगी को घुटने के बल बैठाकर कंधे के जोड़ों को ऊपर तथा नीचे की ओर मोड़ना दबाव- सबसे पहले रोगी को घुटने के बल बैठा देना चाहिए इसके बाद चिकित्सक को रोगी के पीछे की ओर खड़ा हो जाना चाहिए। इसके बाद रोगी को अपने कंधों तथा धड़ को शिथिलता देना चाहिए। फिर चिकित्सक रोगी के कंधे की त्रिकोणिका पेशी को पकड़ कंधों से यथासम्भव ऊपर की उठाता है और एक दम छोड़ देना चाहिए। इस प्रकार से इस क्रिया को तीन बार दोहराने से रोगी का कंधे अपने प्रकृतिक स्थिति में आ जाती है।
10. रोगी को घुटने के बल बैठाकर कंधे तथा मेरू-रज्जु पर नीचे की ओर थपथपाना दबाव-
         सबसे पहले रोगी को घुटनो के बल बैठाना चाहिए। इसके बाद चिकित्सक को रोगी के पीछे की ओर झुककर खड़ा होना चाहिए। फिर अपने दोनो हाथों की उंगलियों को रोगी के कंधे पर रख कर दबाव देना चाहिए। इसके बाद रोगी की भुजाओं के पृष्ठ भाग पर नीचे की ओर थपथपाना चाहिए।
         इसके बाद चिकित्सक को रोगी के बाईं तरफ खड़ा होकर अपनी दोनों हथेलियों से सहारे के लिए रोगी के बाएं कंधे पर रखता है। फिर वह नीचे की ओर केन्द्रित अपनी दाएं हथेली तथा उंगलियों को ग्रीवा के सातवें कशेरूका के नीचे रख कर तेजी से रोगी के रीढ़ की हड्डी पर अर्थात नीचे की त्रिकास्थि तक दो बार थपथाता है।

आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से मस्तिष्क का उपचार

परिचय-

आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा कोई भी व्यक्ति अपने आप भी मस्तिष्क की रेखा पर दबाव देकर कई प्रकार के मस्तिष्क से सम्बन्धित रोग हो ठीक कर सकता हैं।
        मस्तिष्क की वे बिन्दु जिन पर रोगी व्यक्ति अपने आप दबाव देकर उपचार कर सकता है इस प्रकार हैं-
मस्तिष्क के मध्य रेखा की बिन्दु पर दबाव-
        आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार मस्तिष्क के मध्य रेखा की बिन्दु पर रोगी व्यक्ति अपने आप दबाव देकर रोग का उपचार कर सकता है। इस उपचार को करने के लिए सबसे पहले रोगी को घुटने के बल बैठ जाना चाहिए। फिर इसके बाद मस्तिष्क की मध्य रेखा से सम्बन्धित बिन्दु ललाट की कशेरूका सिर के शीर्ष भाग तक की मध्य रेखा तक फैला होता है। इस क्षेत्र पर दबाव देने के लिए 6 बिन्दु होते हैं। इसके बाद बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी को अपने दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यम तथा अनामिका उंगलियों पर बाएं हाथ की ही इन तीनों उंगलियों को इन बिन्दुओं पर और इसके बाद फिर प्रत्येक बिन्दु पर तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। फिर इस उपचार के तरीके को तीन बार दोहराना भी चाहिए। आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार मस्तिष्क के मध्य रेखा की इन बिन्दुओं पर दबाव सिर की सतह पर समान कोणों के रूप में देना चाहिए।

अंगमर्दक चिकित्सा द्वारा इलाज

परिचय-

          आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा अपने आप उपचार करने के लिए सबसे पहले दो प्रमुख उद्देश्यों को प्राप्त किया जाना चाहिए। सबसे पहले रोगी को केवल मस्तिष्क से नहीं बल्कि पूरे शरीर में हाथों तथा उंगलियों के उपयोग, दबाव देने की जानकारी (विधि) और दबाव के सभी मूल बिन्दुओं को जानना चाहिए क्योंकि अपने शरीर को अभ्यास की वस्तु बनाने से व्यक्ति बड़ी तत्परता से चिकित्सा के उपयोग और दूसरों पर प्रयोग करने में दक्षता (कुशलता) प्राप्त कर सकेगा।
        आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा का उपयोग करने से व्यक्ति यह जान सकेगा कि उसके शरीर का कौन सा अंग अच्छी तरह से काम कर रहा है तथा कौन सा अंग ठीक काम नहीं कर रहा है। इन भागों पर दबाव किस प्रकार से देकर इनकी कार्य प्रणाली में सुधार किया जा सकेगा तथा विभिन्न प्रकार के रोगों को किस प्रकार से दबाव देकर ठीक किया जा सकेगा और रोगों को शरीर में होने से कैसे रोका जा सकेगा।
        आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से उपचार अपने आप केवल स्कंधफलक के मध्य क्षेत्र (कंधे और गर्दन के बीच का भाग) के दाएं-बाएं भाग को छोड़कर सभी भागों का उपचार आसानी से किया जा सकेगा।
1. बाहरी ग्रीवा (गर्दन) क्षेत्र पर आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के बिन्दु पर अपने आप इलाज करने की विधि-
          आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार रोगी व्यक्ति के शरीर का बाहरी गर्दन का क्षेत्र न केवल एक ऐसा भाग है जहां से आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा का उपचार शुरू किया जाता है, बल्कि यह एक ऐसा भाग भी है जहां आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के बहुत सारे बिन्दु होते हैं।
          इन भागों पर अपने आप उपचार करने के लिए बहुत अधिक सावधानी बरतनी चाहिए। इन भागों पर दबाव देने के लिए सबसे पहले बाएं भाग से उपचार को शुरू करना चाहिए तथा इसके बाद रोगी के दाएं भाग की तरफ से उपचार करना चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी को घुटने के बल झुककर बैठना चाहिए। इसके बाद इस भाग से सम्बन्धित बिन्दुओं पर अपने एक हाथ के अंगूठे से दबाव देना चाहिए। बाहरी ग्रीवा (गर्दन) क्षेत्र पर आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के बिन्दु का सबसे पहला बिन्दु उस भाग पर होता है, जहां पर आम ग्रीवा (गर्दन) धमनी शाखाओं में बंटकर बाहरी व आंतरिक ग्रीवा (गर्दन) धमनियां बनाती हैं। आंतरिक मन्या धमनी की ओर मन्या सायनस होता है तथा वहां पर नाड़ी अनुभव की जा सकती है। यहां स्थित बिन्दु पर ऊपर की ओर नोक वाले बाएं अंगूठे को दबाना चाहिए और बाईं कोहनी को पाश्र्व में फैलाना चाहिए। इसके बाद शेष चारों उंगलियों को गले के पास वाले भाग पर हल्के से दबाव देना चाहिए। इस प्रकार का दबाव कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए देना चाहिए तथा दबाव को दिन में तीन बार दोहराना भी चाहिए।
2. बाहरी ग्रीवा(गर्दन) क्षेत्र पर आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के बिन्दु पर जो गर्दन का क्षेत्र होता है उस पर अपने आप इलाज करने की विधि-
          आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार रोगी के शरीर का बाहरी गर्दन का क्षेत्र केवल एक ऐसा बिन्दु होता है जो गर्दन के भाग से सम्बन्धित होता है। इस भाग पर अपने आप इलाज करने के लिए सबसे पहले इस क्षेत्र की ग्रन्थियों को जान लेना आवश्यक है। इस भाग में थायरॉयड ग्रन्थि हंसली (कंठ मूल के दोनों तरफ की हड्डी) तक स्थित होती है। इस बिन्दु पर दबाव लगभग तीन सेकेण्ड के लिए देना चाहिए और उपचार को प्रतिदिन तीन बार दोहराना चाहिए। दबाव गर्दन के भाग से शुरू करते हुए ग्रीवा-कशेरूका की मेरूदण्डीय भाग तक देना चाहिए। यदि गर्दन के मध्य की ओर केन्द्रित दबाव देते हैं तो श्वास नली का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है और रोगी को खांसी हो जाती है।
3. पश्च ग्रीवा (गर्दन) क्षेत्र के आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के बिन्दु पर अपने आप इलाज करने की विधि-
        आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार पश्च ग्रीवा (गर्दन) क्षेत्र पर अपने आप इलाज करने के लिए सबसे पहले दोनों हाथों की सटी हुई तर्जनी, मध्यमा व अनामिका उंगलियों से पृष्ठा ग्रीवा (गर्दन) क्षेत्र के दोनों भागों का बारी-बारी से उपचार किया जाता है और इस भाग पर दबाव देने के लिए मूल बिन्दु कर्णमूल से कंधे तक स्थित रहता है। इस भाग से सम्बन्धित बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए अपनी दोनों कोहनियों को पाश्र्व में फैलाकर ऊपर विर्णत पहली तीनों उंगलियों से गर्दन के दोनों ओर की बिन्दुओं पर कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। फिर इस तरह से तीन बार दबाव को दोहराना चाहिए। दबाव देते समय व्यक्ति को यह ध्यान रखना चहिए कि गर्दन के क्षेत्र के एक तरफ दिया गया दबाव गर्दन के दूसरी तरफ के उससे सम्बंधित बिन्दु की ओर केन्द्रित होना चाहिए।
4. पश्च कपाल-अंतस्था भाग के आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के बिन्दु पर अपने आप दबाव देने की विधि-
         आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार शरीर के कई भागों से सम्बन्धित रोगों को ठीक करने के लिए दबाव बिन्दु पश्चकपाल कोटर के मध्य भाग से सिर के पीछे की हड्डी तथा प्रथम ग्रीवा कशेरूका के बीच में स्थित होता है। इस भाग पर दबाव देने के लिए पहले दाहिनी मध्यमा उंगली का उभरा भाग रखना चाहिए और उस पर बाईं मध्यमा उंगली का उभरा भाग होना चाहिए। इसके बाद अपनी दोनों हाथ की कोहनियों को अगल-बगल में फैलाकर, फिर अपने मस्तक को आगे की ओर डिग्री तक झुकाकर इन बिन्दुओं पर दबाव देना चहिए। इसके बाद अपने सिर को ऊपर की ओर उठा लेते हैं। फिर इस भाग पर दबाव धीरे-धीरे बढा़ना चाहिए तथा सिर को पीछे की तरफ भी ठीक उसी प्रकार से 30 डिग्री तक मोड़ना चाहिए तथा इस प्रकार के दबाव को मध्य बिन्दु की ओर केन्द्रित होना चाहिए। जब इस प्रकार के दबाव में आगे की ओर झुके सिर से पीछे झुके सिर की अवस्था के दौरान दिया जाने वाला दबाव पांच सेकेण्ड के लिए देना चहिए। फिर इस तरह दबाव को देकर रोग को ठीक करने की विधि को तीन बार दोहराना चाहिए।
5. पृष्ठा ग्रीवा (गर्दन) क्षेत्र के आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के बिन्दु पर अपने आप दबाव देने की विधि-
          अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार अपने आप उपचार करने के लिए पृष्ठ ग्रीवा (गर्दन) क्षेत्र के दोनों तरफ के तीनों बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए हाथ की तीन उंगलियों का उपयोग करना चाहिए। इसके बाद मेरू-मज्जा के पास स्थित पहले बिन्दु पर अनामिका उंगली रखनी चाहिए। तर्जनी तथा मध्यमा उंगलियां एक दूसरे के समानन्तर होती हैं। इन बिन्दुओं पर दबाव सिर के मध्य रेखा की ओर रहना चाहिए तथा दबाव दोनों तरफ के सबसे ऊपरी तीन बिन्दुओं पर देना चाहिए। फिर दोनों ओर के सभी बिन्दुओं पर बारी-बारी से तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। फिर उपचार तीन बार दोहराना चाहिए। इसके बाद फिर से तीनों बिन्दुओं पर दबाव देते समय तर्जनी उंगली को ग्रीवा (गर्दन) के सातवें कशेरूका की ऊंचाई तक होना चाहिए।

कंधे तथा कमर पर आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से उपचार

परिचय-

          आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार कंधे तथा कमर से सम्बंधित रोगों को ठीक करने के लिए कंधे तथा कमर पर कई बिन्दुएं होती है जिन पर रोगी व्यक्ति अपने आप भी दबाव देकर अपना इलाज कर सकता है।
कंधे तथा कमर पर उपचार करने के लिए निम्नलिखित भाग पर बिन्दुएं होती है जो इस प्रकार हैं-
1. कंधे के भाग पर ऊपरी स्कंधफलक के क्षेत्र-
          आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार ऊपरी स्कंफलक क्षेत्र पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को किसी कुर्सी, तख्त या फिर आराम की स्थिति वाली जगह पर सावधानीपूर्वक बैठ जाना चाहिए। फिर इसके बाद ऊपरी स्कंधफल के क्षेत्र पर उपचार करना चाहिए तथा दबाव देने का कार्य सबसे पहले इस क्षेत्र की बाईं तरफ से शुरू करना चाहिए और फिर अपने दाएं हाथ की तर्जनी, मध्यम व अनामिका उंगलियों से अधिजठर कोटर की ऊंचाई पर धड़ के मध्य भाग की ओर केन्द्रित बिन्दु पर दबाव देना चाहिए। लेकिन इन भाग के बिन्दुओं पर दबाव पांच सेकेण्ड तक देना चाहिए। फिर इस प्रकार से दबाव का क्रम तीन बार दोहराना चाहिए। इसके बाद बाएं हाथ की तीनों उंगलियों की सहायता से दाहिने ऊपरी स्कंधफलक पर भी ठीक इसी प्रकार से दबाव देना चहिए। इस दबाव के क्रम को तीन बार 5-5 सेकेण्ड के लिए दोहराना चाहिए । इस प्रकार से आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार कंधे के ऊपरी स्कंधफलक पर प्रतिदिन उपचार करे तो रोगी के कंधे से सम्बन्धित रोग जल्दी ठीक हो जाते हैं।
2. अधो स्कंधफलक व कटि क्षेत्र-
          आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार ऊपरी स्कंधफलक क्षेत्र (कंधे के ऊपर का भाग) पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को किसी कुर्सी या तख्ते या फिर आराम की स्थिति वाली जगह पर सावधानीपूर्वक बैठ जाना चाहिए। फिर इसके बाद अधो स्कंधफलक व कटि (कमर) क्षेत्र पर उपचार करना चाहिए तथा उपचार करने के लिए सबसे पहले अपने दोनों हाथों की भुजाओं को अपनी कमर के पीछे की ओर लाना चाहिए तथा दोनों हाथों की ऊपर की ओर मुड़ी चारों उंगलियों को अपनी दिशा में हल्के से लपेट लेंना चाहिए तथा रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर स्थित अधो स्कंधफलक बिन्दुओं पर दबाव देना चाहिए। मेरूरज्जु भाग के दस बिन्दुओं में से पहला बिन्दु ठीक डायाफ्राम के पीछे स्थित होता है और शेष बिन्दु नीचे की ओर जरा-जरा से अंतराल पर पांचवे कटि कशेरूका तक स्थित होते हैं। इसके बाद अपने दोनों अंगूठों की सहायता से रीढ़ के भाग की बिन्दुओं पर बारी-बारी से दबाव देना चाहिए। फिर अपने धड़ को पीछे की ओर थोड़ा सा झुकाना चाहिए और फिर अपने धड़ को सीधा करना चाहिए। इन बिन्दुओं पर कम से कम पांच सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। इस प्रकार प्रतिदिन कुछ दिनों तक दबाव देने की क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। इस प्रकार से आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार इन क्षेत्र के बिन्दुओं पर दबाव देने से अधो स्कंधफलक व कटि क्षेत्र से सम्बन्धित रोग ठीक हो सकते हैं।
3. श्रेणिफलक शिखर-
          आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार ऊपरी श्रेणिफलक शिखर पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को किसी कुर्सी, तख्त या फिर आराम की स्थिति वाली जगह पर सावधानीपूर्वक बैठ जाना चाहिए। फिर इसके बाद श्रेणिफलक शिखर पर उपचार करना चाहिए। यह श्रेणिफलक का क्षेत्र कूल्हों के प्रत्येक भाग की ओर त्रिकास्थि की संधि की बगल में बाहर की तरफ जाती हुई एक लहरदार रेखा पर स्थित होता है और इस लहरदार रेखा पर कई बिन्दु होते हैं। इन बिन्दुओं पर उपचार करने के लिए अपने दोनों अंगूठों को समान स्तर पर आड़ी रेखा के रूप में रखकर प्रत्येक बिन्दु पर दबाव देना चाहिए। लेकिन इन बिन्दुओं पर तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए और इस तरह दबाव देकर उपचार करने की क्रिया को कम से कम तीन बार दोहराना चाहिए। इस प्रकार से दबाव देते समय रोगी व्यक्ति के दोनों हाथों की चारों उंगलियां पश्च उदर (पेट) के क्षेत्र पर लिपटी होती है। जैसे-जैसे अंगूठे को अगले बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए आगे की ओर बढ़ाते हैं वैसे-वैसे वे उंगलियां आगे की ओर बढ़ती है। इस प्रकार से दबाव का क्रम प्रतिदिन करने से रोगी कुछ ही दिनो में अपने रोग से छुटकारा पा लेता है।
4. त्रिकास्थि क्षेत्र-
          आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार ऊपरी त्रिकास्थि क्षेत्र पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को किसी कुर्सी या तख्ते या फिर आराम की स्थिति वाली जगह पर सावधानीपूर्वक बैठ जाना चाहिए। फिर इसके बाद रोगी को यह जानने की आवश्यकता है कि त्रिकास्थि क्षेत्र के तीनों बिन्दु त्रिकास्थि की उर्ध्वाकार मध्य रेखा के साथ-साथ स्थित होते हैं। फिर इसके बाद अपने दोनों अंगूठें के अग्र भाग को मिलाकर प्रत्येक बिन्दु पर तीन सेकेण्ड तक दबाव देना चाहिए। इस प्रकार का दबाव तीन बार दोहराना चाहिए। जब इस क्षेत्र के अंतिम बिन्दु पर दबाव देते हैं तो उस समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि त्रिकास्थि क्षेत्र पर दबाव न पड़े। इस प्रकार से रोगी व्यक्ति अपने शरीर पर प्रतिदिन दबाव देता है तो उसका रोग जल्दी ठीक हो सकता है।

आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा मांसपेशियों को लचीला बनाना

परिचय-

          मासंपेशियों को आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा लचीला बनाने के लिए सबसे पहले यह जानने की जरूरत है कि शरीर में मांसपेशियों के कितने प्रकार होते हैं। मनुष्य के शरीर में जितना भार होता है उसका लगभग 45: भाग मांसपेशियों का होता हैं और ये मांसपेशियां तीन प्रकार की होती है।
शरीर में मांसपेशियों के प्रकार-
1. कोमल मांसपेशियां- ये मांसपेशियां अनैच्छिक कही जाने वाली मांसपेशियां होती हैं तथा ये सिकुड़ती और फैलती रहती है। इन मांसपेशियों के तन्तु छोटे तथा धारी के साथ रहते हैं।
2. हृदय मांसपेशी- ये मांसपेशी अनैच्छिक धारीदार तथा अधिक शक्तिशाली होती हैं।
3. धारीदार मांसपेशियां- ये मांसपेशियां अस्थिपंजर को जोड़ने का कार्य करती हैं तथा ये पेशियां हलचल, स्थिति तथा मुद्रा को बनाए रखती है। इन मांसपेशियों को स्वैच्छिक मांसपेशी भी कहते हैं क्योंकि इन मांसपेशियों का इच्छा के अनुसार संचालन (नियंत्रण) किया जा सकता हैं। ये पेशी धारीदार ढर्रे के रूप में होती हैं तथा इनमें स्थित पेशी संकोच के कारण ही शरीर को वांच्छित स्थिति में रखा जा सकता है। शरीर में इन पेशियों की संख्या 400 होती हैं। जब कोई मनुष्य नींद की अवस्था में होता है तो उसकी इन पेशियों में सिकुड़न बनी नहीं रहती है। इसलिए जब मनुष्य बैठ के ऊंघता है तो उस मनुष्य का सिर दाएं-बाएं लुढ़कता रहता है।
मांसपेशियों की थकान की अवस्था- जब मांसपेशियां गतिशील तथा तनावग्रस्त होती हैं तो इन मांसपेशियों में थकानशील तत्वों (कार्बन डाईआक्साइड, लेक्टिक एसिड) की मात्रा बढ़ जाती हैं जिसके कारण मांसपेशियों के तन्तु कड़े हो जाते हैं और मांसपेशियां सिकुड़ नहीं पाती जिसके फलस्वरूप व्यक्ति को थकान का अनुभव होता है। इस थकावट के कारण खून तथा लसिका में प्रभाव कम हो जाता हैं तथा शरीर का पोषण भी अपर्याप्त हो जाता है। यदि इन मांसपेशियों का कड़ापन जल्दी ठीक न हुआ या जल्दी इसका इलाज न किया जाए तो शरीर की नाड़ियां कमजोर हो जाती हैं। जिसके कारण अतं:स्रावी अंग तथा आंतरिक अंग प्रभावित हो जाते हैं और शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है। इस प्रकार की मांसपेशियों के कड़े हो जाने की अवस्था को आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से ठीक किया जा सकता है।
मांसपेशी का परीक्षण-
0%0शून्यसंकुचन(सिकुड़न) का प्रमाण नहीं होता है।
10%1झलक मात्रहल्के संकुचन (सिकुड़न) का प्रमाण होता है तथा गतिहीन होता है।
25%2कमजोरगतिशीलता के साथ गुरूत्व का अभाव होता है।
50%3बेहतरगुरूत्वाकर्षण के विरूद्ध सारी गतिशीलता होती है।
75%4अच्छागुरूत्वाकर्षण के प्रति कुछ प्रतिरोध के साथ सारी गतिशीलता होती है।
100%5सामान्यगुरूत्वाकर्षण के प्रति कुछ प्रतिरोध के साथ सारी गतिशीलता होती है।

आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से कनपटी क्षेत्र पर उपचार

        आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा कोई भी व्यक्ति अपने आप भी कनपटी क्षेत्र पर दबाव देकर कई प्रकार के कनपटी क्षेत्र से सम्बन्धित रोगों को ठीक कर सकता है।
        कनपटी क्षेत्र पर वे बिन्दुएं जिन पर रोगी व्यक्ति अपने आप दबाव देकर उपचार कर सकता है वे इस प्रकार हैं-
1. कनपटी क्षेत्र पर दबाव-
        कनपटी क्षेत्र पर रोगी को अपने आप दबाव देने के लिए सबसे पहले आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार घुटने के बल बैठ जाना चाहिए। फिर सिर के मध्य रेखा के बिन्दुओं पर दबाव देना चाहिए। इसके बाद सिर के छठे बिन्दु पर दबाव देना चाहिए। वैसे देखा जाए तो सिर में प्रत्येक भाग पर 18 बिन्दु होते हैं। इसके बाद अपने दोनों हाथों की तर्जनी, मध्यमा तथा अनामिका उंगलियों से बारी-बारी से मध्य रेखा से नीचे की ओर कनपटी की केश रेखा तक स्थित दोनों कतारों पर अच्छी तरह से दबाव देना चाहिए। जब इस प्रकार से दबाव दे रहे हैं तो एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि दबाव मस्तिष्क की सतह पर उर्ध्वाकार रूप में देना चाहिए। सिर के मध्य रेखा के प्रत्येक तरफ पांचवे बिन्दु से तीन बिन्दुओं वाली दोनों कतारों पर दबाव देकर उपचार को दोहराना चाहिए तथा यह दबाव ललाट की केश रेखा तक देना चाहिए लेकिन यह उपचार केवल एक बार ही करना चाहिए।

2. कनपटी क्षेत्र पर हथेलियों के द्वारा दबाव-
        कनपटी क्षेत्र पर हथेलियों के द्वारा रोगी व्यक्ति को अपने आप दबाव देने के लिए सबसे पहले आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार घुटने के बल बैठ जाना चाहिए। फिर इसके बाद अपने दोनों हाथों की हथेलियों को अपनी कनपटी क्षेत्र से ऊपर सिर की सतह से चिपका कर रखना चाहिए। इसके बाद अपने दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में चिपकाकर रखना चाहिए तथा उंगलियों की नोक को ऊपर की ओर रखना चाहिए। फिर इसके बाद दोनों हथेलियों से दाएं-बाएं कनपटी क्षेत्र पर दबाव देना चाहिए। इसके बाद इस प्रकार से दबाव देते समय अपनी कोहनियों को अगल-बगल में सीधा फैलाकर संतुलित तथा स्थिर बल से दस सेकेण्ड तक दबाव देना चाहिए। इसके बाद दबाव को आड़े तरीके से देना चाहिए तथा इसके बाद इस क्षेत्र पर हाथों को कंपकंपाते हुए दबाव देना चाहिए।

चेहरे पर आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा दबाव

परिचय-

          यदि किसी व्यक्ति को चेहरे से सम्बन्धित कोई रोग हो जाता है तो उसे ठीक करने के लिए चेहरे पर कई बिन्दु होते हैं जिनका आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से इलाज किया जाए तो वह ठीक हो सकता है।
चेहरे पर अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार बिन्दु निम्नलिखित है-
1. चेहरे के अग्र-भाग (सामने का भाग) की मध्य रेखा के ऊपर बिन्दु जिस पर रोगी व्यक्ति अपने आप दबाव देकर रोग को ठीक कर सकता हैं-
  • आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार रोगी को अपने चेहरे के अग्र-भाग पर दबाव देने के लिए सबसे पहले घुटने के बल बैठ जाना चाहिए। फिर इसके बाद चेहरे के अग्र-भाग से सम्बन्धित जो बिन्दु होते हैं। उन पर तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। फिर इस प्रकार से दबाव देने की क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए।
  • इसके बाद दबाव देने के लिए अपने दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यम तथा अनामिका उंगलियों पर बाएं हाथ की ये ही तीनों उंगलियों को रखकर भूमध्य बिन्दु के जरा से ऊपर की ओर मध्य रेखा पर स्थित तीनों बिन्दुओं पर दबाव देना चाहिए। इस प्रकार से दबाव कुछ दिनों तक लगातार देना चाहिए जिसके फलस्वरूप चेहरे के इस भाग से सम्बन्धित होने वाला रोग जल्दी ही ठीक हो जाते है।
2. चेहरे के नासिका क्षेत्र पर दबाव- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार यदि चेहरे के नसिका क्षेत्र से सम्बन्धित कोई रोग हो जाए तो उसका इलाज व्यक्ति अपने आप भी कर सकता है। इस क्षेत्र से सम्बन्धित तीन बिन्दु नाक के साथ-साथ होते हैं। पहला बिन्दु आंख के आंतरिक भाग के कोने के अन्दर होता है, दूसरा बिन्दु नाक की हड्डी के बगल में होता है और तीसरा बिन्दु नाक के नथुनों के पंखों के पास होता है। इन बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए व्यक्ति को अपने हाथ की तर्जनी उंगली के उभरे भाग से दाएं-बाएं के बिन्दुओं पर बारी-बारी से दबाव दिया देना चाहिए। इसके बाद में स्थिरता के लिए अपनी  तर्जनी उंगली के ऊपरी वाली मध्यम उंगली का उभरा भाग रखा जाता है। फिर इन बिन्दुओं पर स्थिर रूप से दबाव देना चाहिए। चेहरे के नासिका क्षेत्र के बिन्दुओं पर दबाव कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए देना चाहिए तथा बाद में दबाव देने की ठीक इस प्रकार की क्रिया को तीन बार दोहराना भी चाहिए। इस प्रकार से दबाव देने से रोगी व्यक्ति का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
3. चेहरे के कपोलास्थि क्षेत्र पर दबाव- अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार चेहरे के कपोलास्थि के प्रत्येक भाग के बिन्दुओं पर दबाव देकर उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी को आराम की अवस्था में बैठ जाना चाहिए। अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार कपोलास्थि क्षेत्र के प्रत्येक भाग के तीन-तीन बिन्दु नथुनों के पंखो की बगल से ऊपर की ओर कानों तक जाती हुई एक रेखा पर स्थित होते हैं। फिर अपने दोनों हाथों की तर्जनी, मध्यम तथा अनामिका उंगलियों से दोनों भागों के प्रत्येक बिन्दु पर बारी-बारी से जरा सा ऊपरी दिशा में कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए दबाव दिया जाना चाहिए। फिर इसके बाद दबाव देने की क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। इस प्रकार से दबाव कुछ दिनों तक लगातार दबाव देने से रोगी का वह रोग जो इन बिन्दुओं से सम्बन्धित होता है कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
4. चेहरे की ऊपरी तथा निचली नेत्र गव्हर क्षेत्र, कनपटियां व नेत्रगोलकों पर हथेलियों से दबाव-
  • अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार चेहरे की ऊपरी तथा निचली नेत्र गव्हर क्षेत्र, कनपटियां व नेत्रगोलकों पर हथेलियों से दबाव देने के लिए रोगी को सबसे पहले आराम की अवस्था में बैठ जाना चाहिए। फिर इसके बाद अपने दोनों हाथों की तर्जनी उंगली, मध्यम उंगली तथा अनामिका उंगलियों से एक ही समय में नेत्रों के आंतरिक कोने से बाहरी कोने तक के निचले नेत्र गव्हर क्षेत्र के चारों बिन्दुओं में से प्रत्येक पर दबाव देना चाहिए। इन बिन्दुओं पर कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। फिर एक बाद इन बिन्दुओं पर दबाव देने के बाद इस क्रिया को दो बार और दोहराना चाहिए। फिर इसके बाद ऊपरी नेत्र गव्हार क्षेत्र के चारों बिन्दुओं पर भी इसी प्रकार से दबाव देना चाहिए।
  • इसके बाद अपनी कोहनियों को नीचे की ओर लाकर दोनों हाथों की तर्जनी, मध्यम तथा अनामिका उंगलियों के उभरे भागों से आड़े रूप में कनपटी के आंख के बाहरी कोने से कान के मूल तक स्थित तीनों बिन्दुओं में से प्रत्येक बिन्दु पर दबाव देना चाहिए। जब कनपटियों पर दबाव दे दें तो उसके बाद अपनी दाईं-बाईं हथेलियों को दोनों आंखों पर कोमलता से दबाव देना चाहिए तथा इस पर दबाव कम से कम दस सेकेण्ड के लिए देना चाहिए।
5. मसूढ़ों पर दबाव- अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार मसूढ़ों पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को आराम की स्थिति में बैठ जाना चाहिए। फिर इसके बाद मसूढ़ों पर दबाव देकर उपचार करना चाहिए। इसके बाद फिर ऊपरी मसूढ़े पर दबाव देना चाहिए और इसके बाद मसूढ़े के निचले और मसूढ़े के प्रत्येक भाग के तीन बिन्दुओं पर जो मुंह के आखिरी किनारे पर होते है, उन पर दबाव देना चाहिए। इसके बाद मसूढ़े के दाएं तथा बांए भागों के इन बिन्दुओं पर दोनों हाथों की तर्जनी, मध्यम तथा अनामिका उंगलियों से बारी-बारी से दबाव देना चाहिए। इसके बाद अनामिका उंगली से प्रत्येक बिन्दु पर दबाव देना चाहिए। इन बिन्दुओं पर दबाव कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए देना चाहिए और इस उपचार के तरीके को तीन बार इस क्रम से दोहराना चाहिए। जब निचले मसूढ़े पर उपचार कर लें तो इसके बाद ऊपरी मसूढे़ पर भी ठीक उसी प्रकार से उपचार करना चाहिए जैसा कि निचले मसूढ़े पर किया है। इस प्रकार से यदि प्रतिदिन उपचार किया जाए तो रोगी व्यक्ति का वह रोग जो मसूढ़ों से सम्बन्धित है, कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
6. मुंह के कोनों की रिजारियस (Risorius) मांसपेशियों पर दबाव-अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार मुंह के कोनों की रिजारियस मांसपेशियों पर दबाव देने के लिए सबसे पहल रोगी व्यक्ति को आराम की अवस्था में बैठ जाना चाहिए। रोगी व्यक्ति के दोनों हाथों की तर्जनी, मध्यम तथा अनामिका उंगलियों से चेहरे के प्रत्येक भाग पर जहां इस भाग से सम्बन्धित प्रतिबिम्ब बिन्दु है। उन पर उंगलियों को जरा सा बाहरी ओर खींचते हुए बारी-बारी से दबाव देना चाहिए। इन सभी बिन्दुओं पर कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए तथा इस उपचार की विधि को तीन बार दोहराना चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से रोगी का रोग जो रिजारियस मांसपेशियों से सम्बन्धित होता है वह कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा भुजाओं का उपचार

परिचय-

         आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार भुजाओं से सम्बन्धित कोई रोग अगर किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उस व्यक्ति के रोग को ठीक करने के लिए भुजाओं पर बिन्दु होता है और इन बिन्दुओं पर दबाव देने से रोग ठीक हो जाता है।
भुजाओं के कई भाग होते हैं और इन भागों पर निम्नलिखित बिन्दु होते हैं-
1. कांख या बगल के क्षेत्र- कांख या बगल के क्षेत्र पर दबाव देने के लिए बाएं हाथ की हथेली को सीधा, ऊपर की ओर कर के भुजा को बगल की ओर सीधा फैलाएं, फिर दाहिनी हाथ की तर्जनी, मध्यम तथा अनामिका उंगलियों को कांख पर रखें और अंगूठे को डेल्टोपेक्टरल ग्रुव पर। फिर इसके बाद इन बिन्दुओं पर उंगलियों के उभरे भाग से दबाव देना चाहिए। इन बिन्दुओं पर कम से कम पांच सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए और उपचार की इस क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। जब इन बिन्दुओं पर दबाव देते है तो दबाव की दिशा ऊपरी स्कंधफलक (कंधे की ओर) क्षेत्र की ओर रहनी चाहिए। ठीक इसी प्रकार से अपने दूसरे हाथ की भुजा के बिन्दुओं पर भी दबाव देना चाहिए। इन बिन्दुओं पर कुछ दिनों तक लगतार दबाव देने से कई प्रकार के रोग जो इन बिन्दुओं से सम्बन्धित होते है जल्दी ही ठीक हो जाते हैं।
2. मध्य भुजा क्षेत्र- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार मध्य भुजा क्षेत्र पर दबाव देने के लिए सबसे पहले यह जानने की आवश्यकता है कि इस क्षेत्र की बिन्दु होती कहां हैं। इस क्षेत्र से सम्बन्धित बिन्दु कांख से अग्रबाहू कोटर तक एक सीधी रेखा के रूप में स्थित होती हैं। इस भाग पर 6 बिन्दु होती हैं। इन बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने दाहिने हाथ के अंगूठे की नोक को कांख पर रखना चाहिए तथा इसके बाद शेष उंगलियों से भुजा के चारों तरफ लपेट लेना चाहिए और अंगूठे से 6 बिन्दुओं में से प्रत्येक बिन्दु पर लगभग तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। ठीक इसी प्रकार से अपने दूसरे हाथ की भुजा के बिन्दुओं पर भी दबाव देना चाहिए। इन बिन्दुओं पर दबाव देने की क्रिया तीन बार दोहरानी चाहिए। इन बिन्दुओं पर कुछ दिनों तक लगातार दबाव देने से कई प्रकार के रोग जो इन बिन्दुओं से सम्बन्धित होते हैं वे जल्दी ही ठीक हो जाते हैं।
3. अग्रबाहू कोटर- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार अग्रबाहू कोटर क्षेत्र पर दबाव देने के लिए, इस भाग से सम्बन्धित बिन्दु कहां होती है यह जानना आवश्यक है। अग्रबाहू कोटर की बिन्दु हाथ की भुजाओं के क्षेत्र के तीन बिन्दु आंतरिक भाग से बाहरी भाग की ओर एक पंक्ति में स्थित रहती हैं। इन बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए अपने दाहिने हाथ की चारों उंगलियों को भुजा पर रख कर ऊपर की ओर नोक वाले दाहिने अंगूठे से सभी बिन्दु पर तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। फिर इसके बाद इस क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। ठीक इसी प्रकार से अपने दूसरे हाथ की भुजा के बिन्दुओं पर भी दबाव देना चाहिए। इन बिन्दुओं पर दबाव देने की क्रिया तीन बार दोहरानी चाहिए। इन बिन्दुओं पर कुछ दिनों तक लगातार दबाव देने से कई प्रकार के रोग जो इन बिन्दुओं से सम्बन्धित होते है वे जल्दी ही ठीक हो जाते है।
4.  मध्य अग्रबाहू क्षेत्र- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार मध्य अग्रबाहू के क्षेत्र पर दबाव देने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि इस भाग से सम्बन्धित बिन्दु कहां स्थित है। इस भाग में रोगों को ठीक करने के लिए 24 बिन्दु होते हैं और ये बिन्दु प्रकोष्ठिका से बहि:प्रकोष्ठिका तक तीन-तीन बिन्दुओं की आठ उर्ध्वाकार पंक्तियों में स्थित होती हैं। ये आठ उर्ध्वाकार पंक्तियों में पंक्तियां अग्रबाहू कोटर पर स्थित तीन बिन्दुओं के ठीक नीचे स्थित रहती हैं। इन बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए अपने दाहिने हाथ के अंगूठे से प्रत्येक बिन्दु पर लगभग तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। इस प्रकार का दबाव भुजा पर केवल एक बार ही करना चाहिए। ठीक इसी प्रकार से अपने दूसरें हाथ की भुजा के बिन्दुओं पर भी दबाव देना चाहिए। इन बिन्दुओं पर कुछ दिनों तक लगतार दबाव देने से कई प्रकार के रोग जो इन बिन्दुओं से सम्बन्धित होते हैं जल्दी ही ठीक हो जाते हैं।
5. डेल्टोपेक्टोरल ग्रूव- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार डेल्टोपेक्टोरल ग्रूव के क्षेत्र के बिन्दु पर दबाव देने के लिए यह जानना जरूरी है कि ये बिन्दु कहां स्थित होती हैं। इस क्षेत्र से सम्बन्धित बिन्दु भुजा के ऊपर कंधे के आस-पास होती है इन बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए अपने दाहिने हाथ के अंगूठे से प्रत्येक बिन्दु पर दबाव देना चाहिए। इन बिन्दुओं पर लगभग तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। इन बिन्दुओं पर दबाव देते समय हाथ की सारी उंगलियां भुजा पर रहती हैं। इस प्रकार का दबाव इन बिन्दुओं पर तीन बार दोहराना चाहिए। इसके बाद ठीक दूसरें हाथ के भुजाओं पर भी इसी प्रकार से दबाव देना चाहिए। इस प्रकार से कुछ दिनों तक लगातार दबाव देने से रोगी का रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
6. पार्श्विक भुजा क्षेत्र- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार पार्श्विक भुजा के क्षेत्र कें बिन्दु कंधे की त्रिकोणिका पेशी के मध्य भाग के साथ अंसूकट से कोहनी की जड़ तक रहता है। इस भुजा की बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए सबसे पहले भुजा को इस प्रकार घुमाएं कि हथेली अन्दर की ओर रहे फिर अंगूठे को सहारे के लिए भुजा के अन्दर को मोड़ना चाहिए। फिर इस बिन्दु पर तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए तथा इन बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए अपने दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यम तथा अनामिका उंगलियों का प्रयोग करना चाहिए। इसके बाद इस उपचार को तीन बार दोहराना चाहिए। फिर इसके बाद अपने दूसरे हाथ की भुजाओं पर भी इसी प्रकार से दबाव देना चाहिए। इस प्रकार से कुछ दिनों तक लगतार उपचार करने से रोगी का रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
7. पार्श्विक अग्रबाहू क्षेत्र- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार पार्श्विक अग्रबाहू (हाथ के कोहनी से कलाई के बीच का भाग) क्षेत्र के पास यदि आप अपने हाथ की चारों उंगलियों को मिला कर मोडेगें तो कोहनी के पास आप प्रसारक पेशियों में गति महसूस करेंगे। यह वह स्थान होता है जहां पर पार्श्विक अग्रबाहू क्षेत्र का पहला बिन्दु स्थित होता है। वैसे पार्श्विक अग्रबाहू क्षेत्र के आठ बिन्दु वहां से पार्श्विक अग्रबाहू क्षेत्र की कलाई तक स्थित रहते हैं। इन बिन्दुओं से उपचार के लिए आपको अपनी कोहनी मोड़कर अग्रबाहू (हाथ के कोहनी से कलाई के बीच का भाग) को छाती के सम्मुख लाना होगा। इसके बाद कोहनी की ओर केन्द्रित अपने दाहिने से पहले बिन्दु पर दबाव डालें। इस हाथ की शेष उंगलियां सहारे के लिए भुजा से चिपकी रहनी चाहिए। इन बिन्दुओं पर तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। इस उपचार को तीन बार दोहराना चाहिए। ठीक इसी प्रकार से रोगी के दूसरे हाथ पर भी दबाव देना चाहिए। इस प्रकार से रोगी व्यक्ति प्रतिदिन यह उपचार को अपनाता है तो उसका रोग कुछ ही दिनों के अन्दर ठीक हो जाता है।
8. हाथ का पृष्ठीय क्षेत्र- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार हाथ के पृष्ठ भाग पर बिन्दु हडि्डयों के मध्य में तीन-तीन बिन्दुओं की चार पंक्तियों में कलाई से उंगलियों के मूल (जड़) तक स्थित होते है। फिर इसके बाद कलाई को मोड़े तथा दाहिने अंगूठे से अंगूठे की दिशा से प्रारंभ करके इनमें से प्रत्येक बिन्दु पर तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। दबाव देते समय हाथ की चारों उंगलियां सहारे के लिए हथेली से लिपटी रहती हैं। एक बार दबाव देने के बाद दूसरे हाथ की भुजा पर भी ठीक इसी प्रकार से दबाव देना चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से रोगी व्यक्ति का रोग कुछ दिनों में ठीक हो जाता है।
9. आंगुलिक क्षेत्र- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार अंगूठे के मांस से दूर स्थित पर्व पर पंक्ति के रूप में तीन बिन्दु स्थित होते हैं। दाहिने हाथ के अंगूठे व तर्जनी उंगली से पृष्ठ व हथेली के प्रत्येक बिन्दु पर बारी-बारी से दबाव देना चहिए। फिर दूर वाले पर्व भाग पर दबाव देना चाहिए और फिर इस अंगुली को खींचना चाहिए। इसके बाद सभी बिन्दुओं पर जो दाएं तथा बाएं भाग पर होते हैं पर दबाव देना चाहिए। जब अंगूठे के बिन्दुओं पर दबाव दे देते हैं तो उसके बाद शेष उंगलियों के चारों बिन्दुओं पर भी दबाव देना चाहिए। इन बिन्दुओं पर दबाव कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए देना चाहिए। इस प्रकार का उपचार फिर दूसरे हाथ की उंगलियों पर भी करना चाहिए। इस प्रकार का उपचार कुछ दिनों तक करने से रोगी का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
10. हथेली क्षेत्र- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार हाथ की हथेली के मध्य रेखा पर तीन दबाव बिन्दु होते हैं। पहला बिन्दु हथेली के निचले भाग पर होता है तथा दूसरा बिन्दु हथेली के मध्य भाग में होता है और तीसरा मध्यम उंगली की जड़ के पास होता है। इन बिन्दुओं पर सहारा देने के लिए हाथ की शेष चारों उंगलियां हाथ के पृष्ठ भाग पर लिपटी रहती है। फिर दाहिने हाथ के अंगूठे से तीनों बिन्दुओं पर बारी-बारी से तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। फिर इस उपचार को तीन बार दोहराना चाहिए। ठीक इसी प्रकार दूसरे हाथ के बिन्दुओं पर भी दबाव देना चाहिए। इस प्रकार से कुछ दिनों तक लगतार उपचार करने से रोगी का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
11. भुजा का प्रसार- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार अपने दाएं हाथ के अंगूठे को बाईं हथेली के मध्य में रखें तथा इसके बाद हाथ की शेष उंगलियों को बाएं हाथ के पृष्ठ भाग पर लपेट लेना चाहिए। इसके बाद अपने दाएं हाथ को कंधे की ऊंचाई तक उठाएं तथा बाएं हाथ के साथ आगे की ओर फैलाएं इस तरह से भुजा को पांच सेकेण्ड के लिए फैलाना चाहिए। इसके बाद इस क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। इस प्रकार से अगर रोगी प्रतिदिन उपचार करता है तो उसका रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

टांगों (पैरों) के रोगों का आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के द्वारा उपचार

परिचय-

          आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार रोगी की टांगों पर उपचार शुरू करने से पहले यह जानना जरूरी है कि जिस प्रकार रोगी व्यक्ति के दाएं पैर पर उपचार किया जाता है ठीक उसी प्रकार से रोगी व्यक्ति के बाएं पैर पर भी उपचार किया जाना चाहिए। आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अंतर्गत रोगी के पैरों के बिन्दुओं पर दबाव देकर पैरों से सम्बन्धित होने वाले रोग जल्द ही ठीक किया जा सकते हैं।
          पैरों पर निम्नलिखित भाग होते हैं जिनका उपयोग आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा में रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है-
1. नितंब का क्षेत्र-
        आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार नितंब क्षेत्र के चार बिन्दुओं वाली दो पंक्तियां त्रिकास्थि के बिन्दुओं में से पहले बिन्दु के प्रत्येक भाग से शुरू होकर नितंब मांसपेशियों के साथ-साथ नीचे जाती ढलुवा रेखाओं के रूप में बाहर जाती हैं और ट्रोचेंटर (नितम्ब की हड्डी) से पहले रुक जाती हैं। इन बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए नितंब क्षेत्र के बिन्दुओं पर दबाव देने से पहले रोगी को सावधान की अवस्था में खड़ा हो जाना चाहिए। अपने दोनों हाथ के अंगूठे से बारी-बारी रोगी के दाहिने और बाएं नितंब पर जो बिन्दु स्थित है उस पर दबाव देना चाहिए। इन प्रत्येक बिन्दुओं पर दबाव कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए देना चाहिए तथा इस प्रकार की उपचार की क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए।
2. नेमीकोशी बिन्दु-
        आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार नेमीकोशी बिन्दु एंटीरियर सुपिरियर इलियक स्पाइन से तिरछे रूप में नीचे तथा मेरू रज्जु से पांच सेण्टीमीटर दूर मेरूरज्जु को त्रिकास्थि से जोड़ने वाली रेखा पर स्थित होती है। इन बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी को सावधान की अवस्था में खड़ा हो जाना चाहिए और फिर इसके बाद अपने नितंबो की मध्य पेशी के स्थान पर स्थित बिन्दु पर दबाव देना चहिए। इन बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए अंगूठे का उपयोग करना चाहिए तथा दबाव देते समय दोनों हाथों की शेष चारों उंगलियों एंटीरियर सुपीरियर इलियक स्पाइन पर सहारे देने के लिए रखना चाहिए वैसे तो यह उपचार घुटने के बल झुककर करना चाहिए। लेकिन यह उपचार तब करना चाहिए जब इस रोग की अवस्था ज्यादा गंभीर न हो। इन क्षेत्रों पर दबाव तेज देना चाहिए तथा कटिस्नायु खांच की ओर केन्द्रित होना चाहिए। इन बिन्दुओं पर दबाव कम से कम पांच सेकेण्ड के लिए देना चाहिए और इस क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए।
3. बाहरी जघनास्थिक क्षेत्र
        आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार इस प्रकार के क्षेत्र पर उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी को अपने दोनों पैरों को आगे की ओर फैलाकर बैठना चाहिए तथा बायां घुटना जरा सा ऊपर उठा होना चाहिए। अब एंटीयर सुपीरियर इलियक स्पाइन के ठीक नीचे स्थित पहले बाहरी जघनास्थिक बिन्दु पर दाहिने अंगूठे पर बायां अंगूठा रख कर दबाव देना चाहिए। फिर इसके बाद अपने दोनों हाथों की शेष चारों उंगलियां सहारे के लिए जांघों से लिपटी रखनी चाहिए। इसके बाद इस स्थिति से नीचे घुटने तक के सभी दस बिन्दुओं में से प्रत्येक पर तीन सेकेण्ड तक दबाव देना चाहिए और इसके बाद इस क्रिया को कम से कम तीन बार दोहराना चाहिए। इस प्रकार से रोगी को प्रतिदिन अपना इलाज करने से उसके टांगों से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
4. मध्य जघनास्थिक क्षेत्र-
         आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार इस प्रकार के क्षेत्र पर उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी को अपने बाएं घुटने को बाहर की ओर मोड़ की ओर मोड़कर उसके तलुवे को दाहिने घुटने के नीचे लाना चाहिए तथा इसके बाद मध्य जघनास्थिक क्षेत्र के दसों बिन्दु शंकाकार मांसपेशी के ठीक नीचे से एक पंक्ति के रूप में घुटने तक स्थित होती हैं। इसके बाद अपने दाएं हाथ के अंगूठे के समान्तर बाएं हाथ के अंगूठे को रखकर मध्य जघनास्थिक क्षेत्र पर दबाव देना चाहिए। यह दबाव कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए देना चाहिए और एक बार दबाव देने के बाद इसी क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। इस प्रकार से रोगी का अपना इलाज प्रतिदिन करता है तो उसके टांगों से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
5. पाश्र्व जघनास्थिक क्षेत्र-
         आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार पाश्र्व जघनास्थिक क्षेत्र पर दबा देकर इलाज करना हो तो रोगी को चाहिए कि सबसे पहले अपने बाएं पैर को मूल स्थिति में वापस लाकर उसे अन्दर को मोड़े। इस तरह वह दाहिने घुटने के ऊपर होगा। इसके बाद दोनों अंगूठों को उनके बाहरी किनारों से मिलाएं तथा शेष उंगलियों को जांघ के चारों तरफ सहारे के लिए लपेट कर ट्रोचेंटर से घुटने की संधि तक एक रेखा के रूप में स्थित दसों बिन्दुओं में से प्रत्येक पर तीन सेकेण्ड तक दबाव देना चाहिए। इसके बाद फिर से इसी क्रिया को कम से कम तीन बार दोहराना चाहिएं। इस प्रकार से रोगी अपना इलाज प्रतिदिन करें तो उसके टांगों से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
6. पश्च जघनास्थिक क्षेत्र-
 आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार पश्च जघनास्थिक क्षेत्र पर दबाव देने के लिए सबसे पहले यह जान लेना चाहिए कि इस क्षेत्र के दस बिन्दुओं में से पहला बिन्दु नितंब के मोड़ पर कटिस्नायु गुलिका के नीचे स्थित होता है तथा शेष बिन्दु घुटने के जो के पिछले कोटर तक नीचे जाती एक पंक्ति में स्थित होते हैं। वैसे इस क्षेत्र के बिन्दुओं पर दबाव खड़ी अवस्था में आसानी से दिया जा सकता है। इसलिए रोगी व्यक्ति को खड़ा होकर अपने दोनों हाथों की तर्जनी, मध्य तथा अनामिका उंगलियों से इन बिन्दुओं पर बारी-बारी से लगभग तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए तथा इसके बाद इस क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। जब इस प्रकार से रोगी एक बार उपचार कर लेता है तो उसे अपने पैरों को फैलाकर जमीन पर बैठ जाना चाहिए और फिर अपने बाएं घुटने को ऊंचा उठाना चाहिए। फिर दोनों हाथों की पहली तीनों उंगलियों को सटाकर उनके उभरे भागों को दूसरे बिन्दु पर रखें तथा अंगूठों को सहारे के लिए जांघ पर कसना चाहिए। फिर इसके बाद जांघ के दसवें बिन्दु पर तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए और उपचार को तीन बार दोबारा दोहराना चाहिए। इस प्रकार से रोगी अपना इलाज प्रतिदिन करता है तो उसके टांगों से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
7. जानुफलक क्षेत्र-
 आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार जानुफलक के क्षेत्र पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी को अपने दोनों पैरों को आगे की ओर सीधा रखकर बैठ जाना चाहिए। फिर इसके बाद अपने बाएं घुटने को जरा सा ऊपर की ओर, जमीन से थोड़ा ऊपर उठाकर तथा नोंक मिले दोनों अंगूठों से घुटने के नीचे स्थित तीन बिन्दुओं में से प्रत्येक बिन्दुओं पर लगभग तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। फिर इसके बाद घुटने के ऊपर स्थित तीनों बिन्दुओं पर भी दबाव देना चाहिए। इसके बाद इस उपचार को तीन बार दोहराना चाहिए। फिर इसी प्रकार की क्रिया दाएं पैरों पर भी करनी चाहिए। इस प्रकार से रोगी अपना इलाज प्रतिदिन करता है तो उसके टांगों से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
8. जानु पृष्ठीय कोटर-
 आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार जानु पृष्ठीय कोटर के बिन्दुओं पर उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने दोनों पैरों को सीधा आगे की ओर फैलाकर बैठ जाना चाहिए। इसके बाद अपने दाएं पैर को घुटने के बीच से ऊपर की ओर उठाना चाहिए और फिर अपने दोनों हाथ के अंगूठों को घुटने के जोड़ पर रख कर जानुपृष्ठीय कोटर पर आड़े रूप में स्थित तीन बिन्दुओं में से प्रत्येक बिन्दु पर तथा दोनों आड़े रूप में स्थित तीन बिन्दुओं में से प्रत्येक बिन्दु पर दोनों हाथों की तर्जनी, मध्यम तथा अनामिका उंगलियों के उभरे भाग को रखकर, बाहर से अन्दर की ओर चलते हुए दबाव देना चाहिए। इस क्षेत्र के प्रत्येक बिन्दु पर कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। फिर इसके बाद इस क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। इसके बाद इस तरह से दबाव देने की क्रिया को बाएं पैर पर भी करना चाहिए। इस प्रकार से रोगी अपना इलाज प्रतिदिन करता है तो उसके टांगों से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
9. पश्च अधोजानु क्षेत्र-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार पश्च अधोजानु क्षेत्र पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने दोनों पैरों को आगे की ओर थोड़ा सा तिरछा रूप से मोड़कर बैठ जाना चाहिए। फिर इस क्षेत्र के आठ बिन्दुओं में से पहला बिन्दु जानुपृष्ठीय कोटर के ठीक दूसरे बिन्दु के नीचे होता है तथा इसके बाद शेष सात बिन्दु के नीचे जाती एक रेखा के रूप में कंडरा पेशी तक फैला रहता हैं। इसके बाद पश्च आधोजानु क्षेत्र के बिन्दुओं पर अपने दोनों हाथ की तर्जनी, मध्यम तथा अनामिका उंगलियों से प्रत्येक बिन्दु पर दबाव देना चाहिए। इन बिन्दुओं पर कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए तथा इसके बाद इस दबाव की क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। इस प्रकार से रोगी आपना इलाज प्रतिदिन करता है तो उसके टांगों से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
10. पार्श्विक अधोजानु क्षेत्र-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार पार्श्विक अधोजानु क्षेत्र के बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने दोनों पैरों को सीधा आगे की ओर फैलाकर जमीन पर बैठ जाना चाहिए। इसके बाद अपने बाएं पैर को घुटने के पास से मोड़कर बैठना चाहिए और फिर इससे आपका बायां पैर दाएं पैर पर आ जाएगा। इसके बाद अधोजानु क्षेत्र के 6 बिन्दुओं में से पहला बिन्दु टिबिया के पार्श्विक स्थूलक के ठीक नीचे रखकर पांच सेकेण्ड तक दबाव दें तथा हाथ की चारों उंगलियों को सहारे के लिए पैर के चारों तरफ कसे रखें। इसके बाद इस क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। फिर इसके बाद दाएं पैर पर भी इसी प्रकार से दबाव देना चाहिए और इसके बाद टिबिया तथा बहिजंघिका के मध्य स्थित शेष पांच बिन्दुओं में से प्रत्येक पर तीन सेकेण्ड तक दबाव देना चाहिए और फिर इस क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। इस प्रकार से रोगी अपना इलाज प्रतिदिन करता है तो उसके टांगों से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
11. पदकुर्च क्षेत्र-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार पदकुर्च क्षेत्र के बिन्दुओं पर दबाव देकर रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने दोनों पैरों को आगे की ओर रखकर बैठ जाना चाहिए। इसके बाद अपने दाएं पैर को थोड़ा मोड़ना चाहिए और फिर अपने बाएं पैर को ऊपर की ओर उठाना चहिए तथा अपने इस पैर को अपने धड़ की ओर लाए। फिर पदकुर्च क्षेत्र के बहि:गुल्फ से अंत:गुल्फ तक फैले तीन बिन्दुओं पर अपने दोनों हाथ के अंगूठे से दबाव देना चाहिए। फिर इसके बाद सहारे के लिए अंगूठे को छोड़कर शेष उंगलियों से पैर के टखने पर दबाव देना चाहिए। इसके बाद नोक से जुड़े अंगूठों से प्रत्येक बिन्दु पर लगभग तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। इस क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। फिर इस प्रकार से दबाव दूसरे पैरों के पदकुर्च क्षेत्र पर भी देने चाहिए। इस प्रकार से रोगी अपना इलाज प्रतिदिन करता है तो उसके टांगों से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
12. पंजे का पश्च क्षेत्र-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार पंजे के पश्च क्षेत्र के बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने दोनों पैरों को आगे की ओर रखकर बैठ जाना चाहिए। इसके बाद आपने दाएं पैर को थोड़ा मोड़ना चाहिए और फिर अपने बाएं पैर को ऊपर की ओर उठाकर तथा अपने इस पैर को अपने धड़ की ओर लाएं। फिर अपने दोनों हाथों के अंगूठे पर अंगूठा रखकर पंजे की पहली व दूसरी उंगलियों के जड़ के मध्य स्थान से प्रारंभ कर के चारों बिन्दुओं में से प्रत्येक पर तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। जिन बिन्दुओं पर दबाव दिया जाता है वे पश्च क्षेत्र पर स्थित होते हैं। फिर इसके बाद चार-चार बिन्दुओं की शेष तीन लाइनों के रूप बिन्दु होती है इन बिन्दुओं पर भी दबाव देना चाहिए। लेकिन इन बिन्दुओं पर दबाव केवल एक बार ही देना चाहिए। इस प्रकार से रोगी अपना इलाज प्रतिदिन करता है तो उसके टांगों से सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
13. आंगुलिक क्षेत्र-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार पंजे के आंगुलिक क्षेत्र के बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने दोनों पैरों को आगे की ओर रखकर बैठ जाना चाहिए। इसके बाद अपने दाएं पैर को थोड़ा मोड़ना चाहिए और फिर अपने बाएं पैर को ऊपर की ओर उठाना चहिए। इसके बाद अपने इस पैर को अपने धड़ की ओर लाएं। फिर अपने टखने को बाएं हाथ से पकड़कर ऊपर की ओर मोड़े तथा दाहिने हाथ के अंगूठे व तर्जनी उंगली से प्रत्येक उंगली के पास, मध्य व दूर के पर्वो पर स्थित तीनों बिन्दुओं के पाश्र्व क्षेत्र तथा पद तल (पैर के तलुवों का भाग) के सतहों पर दबाव देना चाहिए। इसके बाद प्रत्येक उंगली के दूरस्थ पर्व पर दबाव देना चाहिए और फिर उंगली को ऊपर की ओर खींचना चाहिए। लेकिन इस उपचार को केवल एक बार ही करना चाहिए।
इस प्रकार से यदि प्रतिदिन इन भागों के बिन्दुओं पर दबाव दें तो इससे सम्बन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
14. पदतल क्षेत्र-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा के अनुसार पदतल (पैर के तलुवों का भाग) क्षेत्र के बिन्दुओं पर दबाव देने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने बाएं घुटने को बाहर की ओर नीचे की तरफ मोड़ कर बैठना चाहिए। इसके बाद इस पैर के पंजे को ऊपर की ओर मोड़ना चाहिए। फिर इस क्षेत्र के चारों बिन्दुओं को जो दूसरी व तीसरी उंगलियों के मध्य स्थान के नीचे स्थित होते हैं पर दबाव दें। फिर दूसरे बिन्दु के ठीक नीचे तथा तीसरे बिन्दु के मेहराब में और चौथा बिन्दु एड़ी के मध्य पर दोनों हाथ के अंगूठे से दबाव देना चाहिए। इन बिन्दुओं पर कम से कम तीन सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए। फिर इस क्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए। इसके बाद हाथों की चारों उंगलियों को सहारे के लिए पंजो की पाश्र्व तह पर चिपकी रखनी चाहिए। इस प्रकार से दबाव देते समय अंत में अंगूठे पर अंगूठे को चढ़ाकर तीसरे बिन्दु पर लगभग पांच सेकेण्ड के लिए दबाव देना चाहिए।
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